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अनुयोगन्द्रिका टीका सूत्र १२३ ऊर्ध्वलोक क्षेत्रानुपूर्वी निरूपणम् ५३३
सम्पति ऊर्ध्वलोकक्षेत्रानुपूर्वी निरूपयतिमूलम्-उड्डलोयखेत्ताणुपुत्वी तिविहा पण्णत्ता, तंजहा पुवाणुपुवी पच्छाणुपुत्री अणाणुपुत्वी । से किं तं पुवाणुपुवी ? पुवाणुपुवी सोहम्मे१, ईसाणेर, सणंकुमारे३, माहिदे४, बंभलोए५, लंतए६, महासुक्के,सहस्सारेद,आणए९,पाणए१०, आरणे११ अच्चुए१२, गेवेजगविमाणे१३, अणुत्तरविमाणे१४, ईसिपब्भारा१५, से तं पुवाणुपुत्वी । से किं तं पच्छाणुपुबी? पच्छाणुपुत्वी ईसिपब्भारा जाव सोहम्मे । से तं पच्छाणुपुवी। से किं तं अणाणुपवी? अणाणुपुवी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए पन्नरसगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूगो। से गं अणाणुपुत्वी। अहवा ओवणिहिया खेत्ताणुपुवी तिविहा पण्णत्ता, तं जहापुवाणुपुत्वी, पच्छाणुपुवी, अणाणुपुवी। से किं तं पुवाणुपुवी ? पुवाणुपुत्री-एगपएसोगाढे, दुप्पएसोगाढे, दसपएसोगाढे संखि. जपएसोगाढे जाव असंखिजपएसोगाढे । से तं पुवाणुपुब्धी। से किं तं पच्छाणुपुत्री ? पच्छाणुपुठवी-असंखिजपएसोगाढे संखिजपएसोगाढे जाव एगपएसोगाढे। से तं पच्छाणुपुवी। से किं तं अणाणुपुवी? अणाणुपुटवी-एयाए चेव एगाइयाए एगुत्तरियाए असंखिजगच्छगयाए सेढीए अन्नमन्नब्भासो दुरूवूणो। से तं अणाणुपुब्बी से तं ओवणिहिया खेत्ताणुपुत्वी से तं खेत्ताणुपुवी ॥सू० १२३॥
छाया-ऊर्धलोकक्षेत्रानुपूर्वी त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-पूर्वानुपूर्वी पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी। अथ का सा पूर्वानुपूर्वी ? पूर्वानुपूर्वी-सौधर्मः१, ईशानः२, सनत्कुमारो३, माहेन्द्रो४, ब्रह्मलोफ:५, लान्तको ६, महाशुक:७, सहस्रारा, आनतः९,
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