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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ईट 'अनुयोगद्वार आवस्वरितस्त व अणुओगो ! इमं पुण पट्टवणं पडुच्च आवस्सगस्स अणुओगो ॥ सू० ५ ॥ छाया - यदि उत्कालिकस्य अनुयोग, किमावश्यकस्य अनुयोगः १ आवश्यकव्यतिरिक्तस्य अनुयोगः १ आवश्यकस्यापि अनुयोगः, आवश्यक व्यतिरिक्त'स्थापि अनुयोगः । इदं पुनःप्रस्थानं प्रतीत्य आवश्यकस्य अनुयोगः ॥०५ || टीका- 'जई' इत्यादि - F Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यदि उत्कालिकस्य अनुयोगः किमावश्यकस्य अनुयोगः ? आवश्यक व्यतिरिक्तस्य वाऽनुयोगः ? इति शिष्यप्रश्नः । उत्तरयति - 'आवस्सगस्स वि' इत्यादिना । अनुयोग आवश्यकस्यापि भवति, आवश्यकव्यतिरिक्तस्यापि भवति । " जइ उक्कालिय स" इत्यादि । शब्दार्थ - (इ) यदि ( उक्कालिय स) उत्कालिक श्रुत का (अणुओगो) अनुयोग होता है तो ( कि) क्या (आवस्सग स अणुओगे ?) आवश्यक का अनुयोग होता है ? या ( आव सगवइरित्तस्स अणुओगा) आवश्यक से व्यतिरिक्त का अनुयोग होता है ? उत्तर - ( आवस्सगस्स वि अणुओगे :) आवश्यक का भी अनुयोग होता है । और ( आब सगवइरित्त स वि अणुओगा) जो आवश्यक से भिन्न है उनका भी अनुयोग होता है । (इमं पुण पडवणं पडुच्च आव सगस्स अणुओगा) इस शास्त्र में यह प्रारंभ की अपेक्षा लेकर आवश्यक का अनुयोग कहा है । भावार्थ - शिष्य पूछ रहा है कि हे भदंत ! यदि उत्कालिक श्रुत का अनुयोग होता है तो किस उत्कालिक श्रुत का - आवश्यक का या आवश्यक " जइ उकालियम्स" छत्याहि शब्दार्थ - प्रश्न – (जइ उक्कालियम्स अणुओगो) ले मासिश्रुनो अनुयोग थाय छे, तो (किं आवरसगस्स अणुओगो) शु आवश्यना अनुयोग थाय छे! (आवरसगस्सगवइरित्तग्स, अणुओगो ?) आवश्य थी लिन्न होय येषां श्रुतनो • अनुयोग थाय छे. २- (रसगस्स वि अणुओगो) मावश्यानो पशु अनुयोग थाय छे, मने (आवस्सगवइरित्तस्स वि अणुओगो) ने भावश्यम्थी भिन्न छे तेमनेो पशु मनुयोग थाय छे. ( इमं पुण पट्टवणं पडुच्च आवरसगस्स अणुओगो) या शास्त्रभां या મારભની અપેક્ષાએ આવશ્યકના અનુયોગ કહ્યો છે. ભાવા —શિષ્ય અહી' એવા પ્રશ્ન પૂછે છે કે “હે ભગવન્ ! જે ઉત્કાલિક શ્રુતના અનુયાગ થાય છે, તેા કયા ઉત્કાલિક શ્રુતના અનુયાગ થાય છે ૧ શુ` આવશ્યકના અનુયાગ થાય છે ૧ કે આવશ્યક સિવાયના જે ઉત્કાલિક શ્રુત છે ?તેમના અનુયાગ થાય છે ?’’ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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