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भनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ११३ स्पर्शनावारनिरूपणम् लोकं स्पृशति । अनानुपूर्व्यवक्तव्यकद्रव्योनिरवकाशताप्रसङ्गात् पूर्ववत् लोकस्य देशोनानुपूर्वीद्रव्यस्पर्शना बोध्येति भावः। नानाद्रव्याण्याश्रित्य तु आनुपूर्वीद्रव्याणि नियमात् सर्वलोकं स्पृशन्ति । अनानुपूर्व्यवक्तव्यकद्रव्याणां स्पर्शना तु अत्रैवान्यवहितपूर्वोक्तक्षेत्रद्वारवद् बोध्या। इति स्पर्शनाद्वारम् ।।१० ११३॥ भागेवा असंखेज्जे भागे वा) संख्यात भागों को स्पर्श करता है, असं. ख्यात भागों को स्पर्श करता है' (देमूणं वा लोग फुसइ) देशोन लोक को भी स्पर्श करता है । (नाणादव्वाइं पडुच्च णियमा सव्वलोय फुसंति) नाना द्रव्यों की अपेक्षा करके तो आनुपूर्वीद्रव्य नियम से सर्वलोक का स्पर्श करते हैं (अणाणुपुच्चीदव्वाइं अवत्तव्यगद्व्वाइं च जहा खेत्तं नवरं फुसणा भाणियव्यो) अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों की स्पर्शना तो यहीं पर अव्यवहित पूर्वोक्त क्षेत्रद्वार की तरह जानना चाहिये।
भावार्थ-नैगमव्यवहारनय संमत आनुपूर्वी द्रव्य लोक के संख्या तवें भाग की कोई एक लोक के असंख्यातवे भाग की कोई एक लोक के संख्यात भागों की, कोई एक असंख्यात भागों की, और कोई एक देशोन सर्वलोक की स्पर्शना करते हैं। यहां पर जो कोई एक आनुपूर्वी द्रव्य को देशोन लोक. की स्पर्शना करने का कथन किया है सो उसका कारण यह है कि यदि आनुपूर्वी द्रव्य समस्त लोक की स्पर्शना करें तो अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों को अवकाश प्राप्ति का अभाव होगा। २५० ४३ छ, (संखेज्जे भागे वा, असंखेज्जे भागे वा) सेप्यात सामान ५५ २५० ४३ छ, असभ्यात मागान पशु २५ ४२ छे, (देसूणं वा लोग फुसइ) मन शान न ५४ २५ रे छ. (नाणादव्वाई पडुच्च णियमा सव्वलोय फुसंति) विविध यानी अपेक्षा विया२ ४२पामा भावे, त। मानुषी द्रव्यो नियमयी Aasने। २५४३ छ. (अणाणुपुव्वी दव्वाई अवत्तव्वगव्वाई च जहा खत्तं नवरं फुसणा भाणियव्वा) मनानुयूपी भने सतय द्रव्ये.नी સ્પર્શના વિષેનું કથન પર્વોક્ત ક્ષેત્રદ્વારના કથન મુજબ જ સમજવું જોઈએ.
ભાવાર્થ-નૈગમવ્યવહાર નયસંમત આનુપૂર્વી દ્રમાંનું કોઈ એક આનુપૂર્વી દ્રવ્ય લેકના સંખ્યામાં ભાગની, કેઈ એક આનુપૂર્વી દ્રવ્ય લેકની સંખ્યાત ભાગની, કેઈ એક આનુપૂર્વી દ્રવ્ય લેકના અસંખ્યાત ભાગની અને કેઈ એક આનુપૂવી દ્રવ્ય દેશોન સર્વલકની સ્પર્શના કરે છે. અહીં “એક આનુપૂર્વી દ્રવ્ય દેશોન સવલોકની સ્પર્શના કરે છે. આ પ્રકારનું જે કથન થયું છે તેનું કારણ એ છે કે જે એક આનુપૂવી દ્રવ્ય સમસ્ત લેકની સ્પર્શના કરતું હોય, તે અનાનુપૂર્વ અને અવકતવ્યક
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