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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगदारसले पूर्वानुपूर्वीत्वाद्यसंभवः, अतोऽत्र पुद्गलास्तिकाय एव पूर्वानुपूर्तीस्वादिकोदारता, नत्वन्ये धर्मास्तिकायादय इति। ___ तदेतदुपसंहरन्नाह-' से तं' इत्यादि । सैषा अनानुपूर्वीति । औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी सम्पूर्णति सूचयितुमाह- से तं ओवणिहिया' इत्यादि । सैषा औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वीति । ज्ञायकशरीरमध्यशरीरव्यतिरिक्ता द्रव्यानुपूर्वीसंपूर्णेति सूचयितुमाह-' से तं जाणयसरीरभवियसरीर वइरित्ता' इत्यादि-सैषा ज्ञायकमादि द्रव्यों में तो विषमप्रदेशिकता है इसलिये वहां पूर्वपश्चाद्भाव है। तथा जो अद्धासमय है वह एकसमयरूप है इसलिये उसमें भी पूर्वानु पूर्वी आदि संभवित नहीं हैं इसलिये पुगद्लास्तिकाय ही पूर्वानुपूवी आदिरूप से उदाहृत किये गये हैं अन्य धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य नहीं। (से तं अणाणुपुव्वी) इस प्रकार यह अनानुपूर्वी है । (से तं ओवणिहिया दव्वाणुपुची ) यहांतक पूर्व प्रकान्त औपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी का कथन किया गया है । (से तं जाणयसरीरभवियसरीरवारिता दव्वाणुपुन्वी) इस प्रकार औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का कथन समास होते ही ज्ञायक शरीर भव्य शरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी समाप्त हो जाती है । (से तनो आगमओ दवाणुपुवी-से तं दवाणुपुन्वी) इस कथन की समाप्ति होते ही नोआगम को आश्रित करके जायमात द्रव्यानुपूर्वी का स्वरूप समाप्त हो जाता है । इसप्रकार यह द्रव्यानुपूर्वी है। પ્રવેશિકતા છે, તેથી ત્યાં પૂર્વપશ્ચાદ્ભાવ છે. તથા જે અદ્ધા સમય સંભવિત નથી તેથી પુદ્ગલાસ્તિકાયનું જ પૂર્વાનુપૂર્વી આદિ રૂપે ઉદાહરણ આપવામાં આવ્યું છે, અન્ય ધર્માસ્તિકાય આદિ દ્રવ્યોનું તે પ્રકારે ઉદાહરણ આપવામાં मा०यु नथी. (से त अणाणुपुत्री) 0 Rनु मनानुभूतीन २१३५ छे. (से त ओवणिहिया दव्वाणुपुव्वी) मी सुधीमा पूर्व प्रस्तुत भोपनिधिही द्रव्यानुपूवी ४थन ४२वामा माय छे. (से तं जाणयसरीरभवियसरीरषडरित्ता दव्वाणुपुव्वी) मा रीते भोपनिधिsी द्र०यानुभूती ४ ४थन ५३ यतi જ, જ્ઞાયક શરીર અને ભવ્ય શરીરથી ભિન્ન એવી દ્રવ્યાનુવનું વર્ણન પણ मी समास थाय छे. (से त' नोआगमओ दुधाणुपुत्री-से त दवाणुपुत्री) मा यननी સમાપ્તિ થઈ જવાથી નાઆગમને આધારે જે દ્રવ્યાનુપૂવી બને છે તેના સ્વરૂપના નિરૂપણની પણ સમાપ્તિ થઈ જાય છે. આ પ્રકારનું આ द्रव्यानुयूवा न २१३५ छे. For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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