________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुयोगन्द्रिका टीका सूत्र ९८ पूानुपूादिभेदत्रयनिरूपणम् ४२९ काया, धर्मास्तिकायः, इति व्युत्क्रमेण निर्दिष्टा। तदेतदुपसंहरन्नाह-' से तं' इत्यादि, सैषा पश्चानुपूर्वी ति । अथानानुपूर्वी निरूपयति-' से कि तं' इत्यादिना। अथ का सा अनानुपूर्वी ?-न विद्यते आनुपूर्वी-पूर्वानुपूर्वी पश्चानुपूर्वीद्वयरूपा यस्यां सा तथा विवक्षितपदानामनन्तरोक्तक्रमद्वयमुमुल्लङ्थ्य परस्परसार संभवनिर्भनर्यस्यां विरचना क्रियते साऽनानुपूर्वीत्यर्थः । साहि-एतस्याम्-अनन्तराधिकृतधर्मास्तिकायादिसम्बन्धिन्याम् , एकादिकायाम्-एक आदिर्यस्यां सा तथा तस्याम् , पुन:-एकोतरिकायाम् -एकैक उत्तरः प्रवर्धमानो यस्यां सा तथा पोग्गलस्थिकाए, जीवस्थिकाए आगालस्थिकाए, अहमस्टिकाए धम्मस्थिकाए) अद्धासमय, पुद्गलास्तिकाय,जीवास्तिकाय,आकाशास्तिकाय, अध.
स्तिकाय, धर्मास्तिकाय । इस प्रकार जो धर्मादिक द्रव्यों का व्युत्क्रम से निर्देश है (से तं पच्छाणुपुव्वी) वह पश्चानुपूर्वी है । (से कि अणाणु. पुथ्वी) हे भदन्त ! अनानुपूर्थी का क्या स्वरूप है ? (अणाणुपुत्रो)
उत्तर- अनानुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार है- (एयाए चेव एगाइ. याए एगुत्तरियाए छ गच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णभासो दूरुखूणो) जिस में पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी ये दोनों नहीं हैं उसका नाम अनानुपूर्वी है। इसमें विवक्षित धर्मादिक पदों के अनन्तरोक्त क्रमव्य को उल्लं. 'घन करके परस्पर संम्भवित भंगों से उन पदों की विरचना की जाती है इस अनानुपूर्वी मे जो श्रेणी स्थापित की जाती है उसमें सबसे पहिले एक संख्या रखी जाती हैं। बाद में एक एक की उत्तरोत्तर वृद्धि पागलत्थिकाए, जीवस्थिकाए, आगासस्थिकाए, अहम्मत्थिकाए, धम्मस्थिकाए) અદ્ધાસમય (કાળ), પુદ્ગલાસ્તિકાય, જીવાસ્તિકાય, આકાશાસ્તિકાય, અધમ સ્તિકાય અને ધર્માસ્તિકાય, આ પ્રકારે ધર્માસ્તિકાય આદિ દ્રવ્યોને જે Ceeliy४ निथाय छे, (से त पच्छाणुपुव्वी) तेनुं नाम पश्चानुपू 0 ?
प्रश्न-से कि अणाणुपुव्वी) मापन् ! मनानु¥ी २१३५ ३' छ ?
उत्तर-(अणाणुपुव्वी) मनानुषी नु. २१३५ २ छ-(एयाए घेव एगाइयाए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दूरुवूणो) मा પૂર્વાનુમૂવી અને પશ્ચાનુપૂર્વી એ બને નથી, તેનું નામ અનાનુપૂર્વી છે. તેમાં ધર્માસ્તિકાય આદિ પદેના ઉપર્યુકત બને કમનું ઉલ્લંઘન કરીને પરસ્પર સંભવિત અંગે વડે તે પદની વિરચના કરાય છે. આ અનાનુવમાં જે શ્રેણ સ્થાપિત કરવામાં આવે છે તેમાં સૌથી પહેલાં એક સંખ્યા રાખવામાં આવે છે, ત્યાર બાદ છ સંખ્યા સુધી ઉત્તરોત્તર એકની વૃતિ
For Private and Personal Use Only