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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir જી अनुयोगद्वारसूत्रे छाया - अथ का सा औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी ? औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी त्रिविधा प्रज्ञता, तद्यथा - पूर्वानुपूर्वी १, पश्चानुपूर्वी २, अनानुपूर्वी ३च ॥ मू० ९७।। टीका- ' से किं तं ' इत्यादि -- अथ का सा औपनिधिक द्रव्यानुपूर्वी ? इति शिष्य प्रश्नः । उत्तरमाह - औषनिधि की = उपनिधिःस्थापनं निर्माणमित्यर्थः, स प्रयोजनमस्या सा, द्रव्यानुपूर्वी - द्रव्यविषयाऽऽनुपूर्वी त्रिमकारा प्रोक्ता । तद्यथा - पूर्वानुपूर्वी = विवक्षितधर्मास्तिकायादिद्रव्यविशेषसमुदाये यः पूर्वः = प्रथमस्तस्मादारभ्य या आनुपूर्वी = अनुक्रमः परिपाटी वा निक्षिप्यते सा पूर्वानुपूर्वी १ । पञ्चानुपूर्वी - तत्रैव द्रव्यविशेष"से किं तं ओवणिहिया" इत्यादि शब्दार्थ- से किं तं भवणिहिया दव्वाणुपुत्री ) हे भदन्त ! औपनिधि द्रव्यानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? उत्तर- (ओवणहिया दव्याणुपुत्र्वी तिविहा पण्णत्ता) औपनिधि द्रव्यानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है । (तंजहा) वे उसके ३ प्रकार ये हैं- (पुव्वाणुपुब्बी १, पच्छाणुपुन्वी २, अणाणुपुन्वी ३) १ पूर्वानुपूर्वी २ पचानुपूर्वी और ३, भनानुपूर्वी उपनिधि का अर्थ स्थापन या निर्माण है । यह जिसका प्रयोजन हो उसका नाम औपनिधिकी है । यह द्रव्य विषक औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी पूर्वोक्तरूप से तीन प्रकार की हैं। विवक्षित धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य विशेष के समुदाय में जो पूर्व प्रथम द्रव्य है उससे लेकर जो आनुपूर्वी - अनुक्रम परिपाटी निक्षिप्त की से कि त ओवणिहिया " इत्याहि 66 शहाथ - ( से किं त ओबणिहिया रव्याणुपुत्री १) से भगवन ! भोप નિષિકી દ્રવ્યાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ કેવું છે? उत्तर- ( ओवणहिया दव्वाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता) भोपनिधिडी द्रव्यानुपूर्वीत्र प्रहारनी उही छे, (तंजहा) ते त्रयु प्रकाश नीचे प्रमाणे - (geaiyyəût, qeðigyöt, emmygsat a) (1) yaigyal', (2) us18. पूर्वी, मने (3) अनानुपूर्वी ઔપ ઉપનિધિ એટલે સ્થાપના અથવા નિર્માણુ તે સ્થાપના અથવા નિર્માણુ જેનુ' પ્રત્યેાજન હાય છે તેને ઔપનિષિકી કહે છે. આ દ્રવ્યવિષયક નિષિકીના ઉપર મુજબ ત્રણ પ્રશ્નાર છે. નિશ્ચિત ધર્માસ્તિકાય આદિ દ્રવ્યવિશેષના સમુદાયમાં જે પૂર્વ (પ્રથમ દ્રવ્ય) છે ત્યાંથી શરૂ કરીને જે આનુ पूर्वी (अनुम्भ, परिपाटी) निक्षिप्त अश्वामां आवे छे-राभवामां आवे छे For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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