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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - ४०८ अनुयोगदारको माणपुद्गलाश्च आनुपूर्वीच अनानुपूर्वीच ४ । अथवा-त्रिपदेशिकाच द्विपदेशिकाम भानुपूर्वीच अवक्तव्यकं च ५। अथवा-परमाणुपुद्गलाश्च द्विपदेशिकाश्च अनानुपूर्वच भवक्तव्यकं च ६ । अथवा-त्रिपदेशिकाश्च परमाणुपुद्गला श्च द्विपदेशिकाच आनु. पूर्वी च अनानुपूर्वी च अवक्तव्यकं च ७। सैषा संग्रहस्य भङ्गोपदर्शनता।।मू०९४॥ टीका-'एयाएणं' इत्यादि। अत्रापि सप्त भङ्गा बोध्याः। अस्य सूत्रस्य व्याख्याकृतमाया ३ ॥मू०९४॥ अथ समवतार प्रदर्शयति मूलम्-से किं तं संगहस्स समोयारे? संगहस्स समोयारेसंमहस्त आणपुव्वीदवाई कहिं समोयरंति ? किं आणुपुवीदहिं समोयरंति ? अणाणुपुत्वीदव्वेहि समोयरंति ? अवश्न. वेगवेहिं समोयरंति ? संगहस्स आणुपुवादब्वाइं आणुपुवी. दव्वेहिं . समोयरंति नो अणाणुपुवीदव्वेहिं समोयरंति नो भनानुपूर्वी इस शब्द के वाच्यार्य से यावन्मात्र परमाणु पुगल है वे सब अनानुपूर्वी इस एक पद से संगृहीत हो जाते हैं। (दुप्पएसिया अवसरुवर ) इसी प्रकार यावन्मान विप्रदेशी स्कंध हैं वे एक अवक्तव्यका हैं इस प्रकार अवक्तव्यक इस शब्द के वाच्यार्थ से यावमात्र निप्रदेशी स्कंध हैं वे सब अवक्तव्यक इस एक शब्द से संगृहीत हो जाते हैं। इसी प्रकार से विसं योगी तीन पदों का और त्रिसंयोगी १ एक पद का भी वाच्यार्थ समझ लेना चाहिये। इसी विषय को सूत्रकार ने 'अहवा' मादि पदों द्वारा कहा है इन समस्त पदों की व्याख्या पहिले की जा की है। ॥ सू० ९४ ॥ ... पुदी) २ai ५२मा पुरानो छ, तशा मे४ अनानुषी ३५ ७. मा રીતે સમસ્ત પરમાણુ પુદગલેને અહીં અનાનુપવી પદના વાચ્યાર્થરૂપે ગ્રહણ अपामा भावत छ. (दुप्पएसियां अव्वत्तव्वए) Rai प्रशी छ, તેઓ એક અવક્ત ૫ રૂપ છે. આ રીતે “ અવક્તવ્યક” આ પદને વાગ્યાથી સમસ્ત દિપ્રદેશી કહે છે તેથી જ અવકતવ્ય”. આ એક પદના પ્રયોગ દ્વારા સમરત દ્વિપ્રદેશી ધ ગ્રહણ થઈ જાય છે. એ જ પ્રમાણે વિસગી ત્રણ ભાંગાએાને અને વિસંગી એક ભાંગાને વાગ્યાથે પણ NHead. Hi विषय सूत्रधारे " महा" माहिyalsoti અમ મન | કર્યું છે. આ બધા પદની વ્યાખ્યા પહેલાં આપવામાં આવી ચુકી છે અને For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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