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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ९४ भङ्गोपदर्शनतानिरूपणम् ४०७ छाया - एतया खलु संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्त्तनतया किं प्रयोजनम् ? एतया खलु संग्रहस्य भंगमुत्कीर्तनतया संग्रहस्य भङ्गोपदर्शनता क्रियते । अथ का सा संग्रहस्य भङ्गोपदर्शनता संग्रहस्य भङ्गोपदर्शनता त्रिदेशिका आनुपूर्वी १ परमाणुपुद्गला अनानुपूर्वी २, द्विपदेशिका अवक्तव्यम् ३ । अथवा त्रिप्रदेशिकाश्च परअब सूत्रकार भंगोपदर्शनता का कथन करते हैं"एमाएणं संगहस्स" इत्यादि । - शब्दार्थ - ( एयाएणं संगहस्स मंगसमुक्कित्तणयाए कि पओयणं ) हे भदन्त संग्रहनय मान्य इस भंगसमुत्कीर्तरता से क्या प्रयोजन सिद्ध होता है ? उत्तर- ( एपाएणं संगहस्स समुत्तिणयाए भंगोवदंसणया कीरइ) संग्रहनय मान्य इस भंग समुत्कीर्तनता से संग्रहनय मान्य भंगोपदर्शनता दिखलाई जाती है। ( से किं तं संगहस्स भगोवदंसणया ? ) हे भदन्त ! संग्रनय मान्य भंगोपदर्शनता क्या है ? उत्तर - ( संगहस्स भंगोषदंसणया ) संग्रहनय मान्य भंगोपदर्शनता यह है (तपसि आणुपुथ्वी) यावन्मात्र त्रिप्रदेशी स्कन्ध है वे एक १ आनुपूर्वी है। इस प्रकार भानुपूर्वी इस शब्द के वाच्यार्थ से पावन्मात्र त्रिप्रदेशी स्कंध हैं वे सब संगृहीत हो जाते हैं। (परमाणुपोग्गला अणाrgoवी ) यावन्मात्र परमाणु पुकूल हैं वे एक अनानुपूर्वी हैं- इस प्रकार હવે સૂત્રકાર ભંગાપાશ'નતાનું નિરૂપણ કરે છે— " एयाए संगहस्स माहि " शार्थ' - ( पयाएण संगहस्य भंगवमुचिणयाप किं पओयण ? हे વન્! ગ્રહનયમાન્ય આ ભંગસમુત્કીત નતા વડે કયુ' પ્રયેાજન સિદ્ધ થાય છે. उत्तर- (एमाएण' संगहस्स अंगसमुझिराणयाए संगहस्स भगोवदंसणया कीरई) સુબ્રહનયમાન્ય મા બગસમુત્કીતનતા વડે સગ્રહનય માન્ય સગાપદશ નતા अताववामां आवे छे. ( से किं व संगहरम भंगोवदंसणया ?) हे भगवन् ! સ'ગ્રહનયમાન્ય લગેાપન નતાનું કેવું સ્વરૂપ છે ? उत्तर - ( संगइस भंगविदंसणया ) सभनयमान्य लगोयहर्शनतानु સ્વરૂપ આ પ્રકારનુ છે --- ( तिप्पसिया आणुपुब्बी) नेटसा त्रिदेशी ४, तेथे मे આનુપૂર્વી રૂપ છે. આ રીતે જેટલા ત્રિદેશી ક ંધા જે તેમને અહી” આનુ पूर्वी शहना वाध्यार्थ ३४२वा हो. (परमाणुपोगका अणालु For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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