SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगद्वारा क्षायोपशमि के भावे भान्ति ? पारिणामिके भावे भवन्ति ? सान्निपातिके भावे भवन्ति ? नियमात् सादि पारिणामिके भावे भवन्ति। अनानुपूर्वीद्रव्याणि अवक्तव्यकद्रव्याणि च एवमेव भणितव्यानि ॥सू० ८९॥ । अब सूत्रकार अष्टम जो भावद्वार है-उसका कथन करते हैं "णेगमववहाराण" इत्यादि शब्दार्थ-(णेगमववहाराणं आणुपुत्वीदव्वाइं कतरम्मि भावे होज्जा) प्रश्न-नैगमव्यवहारनय संमत समस्त आनुपूर्वी द्रव्य किस भाव में वर्तते हैं ? (किं उदहए भावे होज्जा ?) क्या औदायिक भाव में वर्तते हैं ? ( उवसमिये भावे होज्जा) या औपशमिक भाव में वर्तते हैं? (खाए भावे होज्जा? ) या क्षायिक भाव में वर्तते हैं ? (ख भोवसमिये भावे होज्जा ?) या क्षायोपशमिक भाव में वर्तते हैं ? (पारिणामिएँ भावे होज्जा) या पारिमाणिक भाव में वर्तते है ? (संनिवाइए भावे होज्जा) या सान्निपातिक भाव में वर्तते हैं ? (णियमा साइ परिणामिए भावे होज्जा) समस्त आनुपूर्वी द्रव्य नियम से सादि पारिणामिक भाव में वर्तते हैं। द्रव्य का उस-उस रूपसे जो परिणमन होता है उसका नाम परिणाम है। इस परिणाम का नाम ही पारिणामिक है। अथवा परिणाम होता हो या परिणाम से जो बनता हो उसका नाम पारिणामिक है। હવે સૂત્રકાર અનગમના આઠમાં ભેદ રૂપ ભારદ્વારનું કથન કરે છે “णेगमववहाराण" त्याह- शहाथ-(णेगमववहाराण आणुपुव्वी दव्वाई कतरम्मि भावे होजा?) પ્રશ્ન-નગમ અને વ્યવહાર નયસંમત આનુપૂ દ્ર કયા ભાવમાં રહે છે? (किं उदइए भावे होजा) शु मोह िामा २२ ? (उवसमिए भावे होज्जा), मोपशम भावमा २७ छ १ (खइए भावे होज्जा ) , क्षायि भाभा डाय छ १ (खओवसमिए भावे होज्जा) क्षाया५मि लामा जय छ ? (पारिणामिए भावे होज्जा ?) , पारिवामिनामा ७.५ छ ? (संनिवाइए भावे होज्जा १) सानिपाति: Ivi डाय छ १. . उत्तर-(णियमा साइपरिणामिए भावे होज्जा) समस्त भानु प्रय નિયમથી જ સાદિપારિણામિક ભાવમાં રહે છે દ્રવ્યનું તે તે રૂપે જે પરિણમન થાય છે તેનું નામ પરિણામ છે એ પરિણામનું નામ જ પરિણામિક For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy