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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ८० समवतारस्वरूपनिरूपणम् . ३३७ इति त्रिविधः प्रश्नः। उत्तरमाइ-नेगमववहाराणं' इत्यादि। नेगमव्यवहारसम्मतानि आनुपूर्वीद्रव्याणि आनुपूर्वीद्रव्येषु समवतरन्ति, नो अनानुपूर्वीद्रव्येषु, न वाऽवक्तव्यकद्रव्येषु । अयं भावा-आनुपूर्वी द्रव्याणि आनुपूर्वी द्रव्यलक्षणायां स्वजातावेव वर्तन्ते, न ततोऽन्यत्र । यतः समवतारः-सम्यगविरोधेन अवतरणवर्तनम्-अविरोधत्तिता पोच्यते । अविरोधवृत्तिता च स्वजातावेव स्यात् , न त परजातौ । तस्याः परजातित्तित्वे विरोधात् । ततश्च नानादेशवृत्तीनि सर्वाण्यनैगम और व्यवहारनय-संमत जो आनुपूर्वी द्रव्य है वे कहां समाविष्ट होते हैं ? क्या आनुपूर्वी द्रव्यों में समाविष्ट होते हैं या अनानुपूर्वी द्रव्यों में ? या ( अवत्तव्यदव्वेहि समोयरंति) अवक्तव्यक द्रव्यों में समाविष्ट होते हैं ? (नेगम ववहारणं आणुपुत्वी दवाई अणाणुपुव्वी व्वेहि समोयरंति ) उत्तर- नैगम व्यवहारनय संमत जो आनुपूर्वी द्रव्य हैं वे आनुपूर्षी द्रव्यों में ही समाविष्ट होते हैं (नो अणाणुपुषीदव्वेहिं समोय. रंति नो अवत्तव्वयव्वेहि समोयरंति) अनानुपूर्वी द्रव्यों में समाविष्ट नहीं है और न अवक्तव्यक द्रव्यों में समाविष्ट होते हैं। इसका भाष यह है-कि समस्त आनुपूर्वी द्रव्य, विना किसी विरोध के अपनी जाति में ही रहते हैं।दूसरी जाति में नहीं । विना विरोध के अपनी जाति में रहना इसी का नाम समवतार समावेश, अविरोधवृत्तिता है। यह व्वेहिं समोयरंति, अणाणुपुव्वी व्वेहिं समोयरंति) नैगम भने •५६ નયસંમત જે આનુપૂવ દ્રવ્ય છે તેમને કયાં સમાવેશ થાય છે? શું આનુપૂર્વી દ્રમાં સમાવેશ થાય છે, કે અનાનુપૂર્વી દ્રવ્યોમાં સમાવેશ याय 2 १ मया (अवत्तव्वयव्वेहि समोयरंति) १४त०५४ द्रव्योमi "मा. वेश याय १ (नेगमयवहाराण आणुपुत्वीदवाई आणुपुत्वीदयहि समोयरंति) उत्त२-नाम सन व्य१६२ नयभत २ भानु द्रव्यो , तमना भानुभवी द्रव्यामा समावेश थाय छ, (नो अणाणुपुल्वी दम्ने समोयरंति, नो अवत्तव्वयव्वेहिं समोयरंति) मनानुर्वा द्रव्यमा समावेश પણ થતું નથી અને અવકતવ્ય દ્રવ્યમાં પણ સમાવેશ થતો નથી આ કથનનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે– સમસ્ત આનુપૂર્વી દ્રા કઈ પણ જાતના વિરોધ (અવરોધ) વિના પિતાની જાતિમાં રહે છે–બીજી જાતિમાં રહેતા નથી કેઈ પણ પ્રકારના વિરોધ વિના પિતાની જાતિમાં રહેવું તેનું જ નામ સમવતાર અથવા સમા म० ४३ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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