SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०८ अनुयोगद्वारसूत्रे आणुपुवी, असंखिजपएसिए आणुपुत्री, अणंतपएसिए आणुपुवी, परमाणुपोग्गले अणाणुपुत्री, दुपएसिए अवत्तवए, तिपएसिया आणुपुवीओ जाव अणंतपएसियाओ आणुपुबीओ, परमाणुपोग्गला अणाणुपुत्वीओ, दुपएसियाई अवत्तवयाई। से तं गमववहाराणं अटुपयपरूवणया ॥सू०७९॥ छाया-अथ का सा नैगमव्यवहारयोः अष्टपदप्ररूपणता ? नैगमव्यवहारयोः अष्टपदप्ररूपणता-त्रिप्रदेशिक आनुपूर्वी, चतुष्पदेशिक आनुपूर्वी, यावद् दशमदेशिक आनुपूर्वी, संख्येयप्रदेशिक आनुपूर्वी, असंख्येयप्रदेशिक आनुपूर्वी, अनन्तमदेशिक आनुपूर्वी, परमाणुपुद्गल अनानुपूर्वी, द्विपदेशिकः अबक्तव्यकः। त्रिप्रदेशिका आनुपूव्र्यों यावत् अनन्तप्रदेशिका आनुपूर्व्यः । परमाणुपुद्गलाः अनानुपूर्व्यः। द्विपदेशिकादीनि अवक्तव्यकानि । सैषा नैगमव्यवहारयो अर्थपदप्ररूपणामू०७५॥ टीका-शिष्य : पृच्छति-अथ का सा नैगमव्यवहारसम्रता अर्थपदप्ररूपणतारूपाऽऽनुपूर्वी ? इति। उत्तरमाइ-नैगमव्यवहारसम्मताऽर्थादमरूपणतारूपाऽऽनुपूर्वी एवं विज्ञेया, तथाहि-त्रिप्रदेशिक:-त्रयापदेशाः परमाणुलक्षणा विभागा यस्मिन् स त्रिप्रदेशिका प्रदेशत्रयात्मकः स्कन्धः आनुपूर्वी बोध्या । एवं चतुष्पदे.. अब सूत्रकार प्रथम भेदका वर्णन करते हैं 'से किं तं नेगमववहाराणं इत्यादि'। शब्दार्थ:-(से किं तं नेगमयवहाराणं अट्ठपयपरूवणया) हे भदन्त! पूर्वकथित नैगम व्यवहारनयसंमत अर्थपद प्ररूपणतारूप आनुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? ____उत्तरः-(नेगमववहाराणं अठ्ठपयपरूवणया) नैगम व्यवहारनय संमत अर्थपद प्ररूपणतारूप आनुपूर्वी का स्वरूप इस प्रकार से है (ति. पएसिए आणुपुब्बी, चउप्पएसिए आणुपुब्धी, जाव दसपएसिए आणु હવે સૂત્રકાર પ્રથમ ભેદનું વર્ણન કરે છે" से कि त नेगमववहाराण'" त्याह शहाथ-(से कि त नेगमववहाराण अपयपरूपवणया ?) भगवन् ! પૂર્વ કથિત નૈગમવ્યવહાર નિયમિત અર્થ પદ પ્રરૂપણતા રૂપ આનુપૂવીનું ११३५ ३तु छ १ . उत्तर-(तिपएसिए आणुपुधी, चउप्पएसिए आणुपुप्वी, जाब दसपएसिए For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy