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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र ७३ नामाद्यानुपूर्वीनिरूपणम् २९७ शिष्यः पृच्छति-से कि तं' इत्यादि । अथ काऽसौ ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्ता द्रव्यानुपूर्वी ? इति। उत्तरमाह-'जाणयसरीर' इत्यादि। ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्ता द्रव्यानुपूर्वी हि द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-औपनिधिको च अनौपनिधिकी च । तत्र भेदद्वयमध्ये या सा औपनिधिकी इह निधिशब्दस्य निक्षेपोऽर्थः, निधानं, निधिः निक्षेपः, न्यासः, स्थापनेति शब्दाः पर्यायाः। उपसामीप्येन निधिः-उपनिधिः-एकस्मिन् विविक्षितेऽर्थे पूर्व व्यवस्थापिते तत्समीपे पाठ की शंकासमाधान पूर्वक जैसी व्याख्या द्रव्यावश्यक के स्वरूपको निरूपण करते समय की है वैसी ही व्याख्या इसकी जाननी चाहिये। इस प्रकार यह नोआगम को लेकर द्रव्यानुपूर्वी का स्वरूप है। (से कि तं जाणयसरीरभावियसरीरबारित्ता दव्वाणुपुव्वी) हे भदन्त ! पूर्वोक्त ज्ञायक शरीर भव्य शरीर इन दोनों से व्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी का क्या स्वरूप है? उत्तर-( जाणयसरीरभवियसरीरवहरित्ता दवाणुपुव्वी दुविहा पण्णत्ता) ज्ञायकशरीर भव्यशरीर इन दोनों से भिन्न द्रव्यानुपूर्वी दो प्रकार की कही है (तंजहा) जैसे (ओवणिहिया, य अणोवणिहिया य) औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी और अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी । (तस्य गं जासा ओवणिहिया सा ठप्पा) इनमें जो औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी है वह स्थाप्य है। क्योंकि अल्प विषयवाली होने से वह इस समय व्याख्या करने योग्य नहीं है। निधिशब्द का अर्थ यहां निक्षेप है। સૂચન કર્યું છે દ્રવ્યાવશ્યકના પ્રકરણમાં શંકાઓના સમાધાન પૂર્વક ભવ્યશારીર દ્રવ્યાવશ્યકના સ્વરૂપનું જેવું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે એવું જ અહીં ભચશરીર દ્રવ્યાનુપૂર્વીનું નિરૂપણ થવું જોઈએ આ પ્રકારનું આગમની અપેક્ષાએ ભવ્ય શરીર દ્રવ્યાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ સમજવું. प्रश्न-(से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वाणुपुव्वी) ભગવન્! પૂર્વપ્રક્રાન્ત જ્ઞાયક શરીર અને ભવ્ય શરીર આ બનેથી ભિન્ન એવી દ્રવ્યાનુવીનું સ્વરૂપ કેવું છે? अत्तर-(जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वाणुपुवी दुविहा पण्णत्ता) સાયકશિરીર અને ભવ્ય શરીરથી ભિન્ન એવી દ્રવ્યાનુપૂવી બે પ્રકારની કહી છે. (जहा) ते । नीये प्रभार छ-ओवणिहियो य अणोवणिहिया य) (1) औपनिधी द्रव्यानुषी अने. (२) मनोपनिधिही द्रव्यानुपूवी (तत्थणं जा मा ओवणिहिया सा उप्पा) तभा २ मोपनिवि भानुभूती छ त स्याय भ० ३८ For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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