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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - अनुयोगद्वारसूत्रे चत्तारि अणुओगदारा भवंति, तं जहा-उवक्कमे १, निक्खेवे २, अणुगमे ३, नए ४ ॥६॥ छाया-आवश्कर य एष पिण्डार्थी वर्णितः समासेन । अत एकैकं पुनरव्ययनं कीर्तयिष्यामि ॥१॥ तद्यथा-सामायिकं चतुर्विंशतिस्तवो बन्दनकं प्रतिक्रमणं कायोत्सर्गः प्रत्याख्यानम् । तत्र प्रथममध्ययनं सामायिकम् । तस्य खलु इमानि चत्वारि अनुयागद्वाराणि भवन्ति, तद्यथा-उपक्रमो निक्षेपः अनुगमो नयः ॥६॥ तात्पर्य कहने का यह है-इस शाख का आवश्यकश्रुतस्कंध ऐसा नाम सार्थक है। अतः सार्थक नाम होने से अवश्य करणीय सावद्ययोगविरति आदि का प्रतिपादन सूत्रकार आगे करेंगे। (एत्तो) इसलिये आवश्यक का संक्षेप से समुदाय अर्थ वर्णन करने के बाद (पुण) पुनः (ऐकेकं अज्झयण) एक एक अध्ययन का (कित्तइस्सामि) कथन में करूंगा। (त' जहा) वे अध्ययन इस प्रकार से हैं-(सामाइयं चउवीसत्थओव-दणयं पडिक्कमणं, काउ'सग्गो पच्चक्खाणं) १ सामायिक, २ चतुर्वि शतिस्तव, ३ वन्दनक, ४ प्रतिक्रमण ५ कायोत्सर्ग ६, प्रत्यारूपान। (तस्थ पढमं अज्झरणं सामाइयं) इन ६ अध्ययनो में से १ पहिला अध्ययन सामायिक है। समः आय:-समायः समायः प्रयोजनमस्येति सामायिकम् इस व्युत्पत्ति के अनुसार रागद्वेष से रहित ऐसा आत्मा का____हाथ-(आवस्सयस्स) या१२५ २॥ नामे प्रसद्धि सेवा शाला (एसो) मा पूर्वात २ने। (पिंडत्थो) ािर्थ (समासे गं) संक्षिHमा (वण्णिओ) ४ामा આવે છે. આ કથનનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે-આ શાસ્ત્રનું આવશ્યક શ્રુત સ્કિન્ધ” એવું નામ સાર્થક છે. આ રીતે આ શાસ્ત્રનું નામ સાર્થક હોવાથી, અવશ્ય કરણીય સાવદ્યાગ વિરતિ આદિનું પ્રતિપાદન સૂત્રકાર આગળ કરવાના છે. (૪) तेथी २१श्यना समुदाय मर्थनु सक्षितभा व रीने (पुण) वे (एकेकं अज्झयणं) मे में अध्ययन (कित्त:स्सामि) पन हुरीश, मे सूत्र पयन मापे छ. (तंजहा) मा१९५४ना ते मध्ययनाना नाम 20 प्रमाणे छे (सामाइयं, चउवीसस्थओ वन्दणय पडिक्कमणं, काउस्सग्गो पञ्चवस्त्राणं) (१) सामायि४, (२) *तु. विशतिस्त१ (२४ तीरानी २तुति). (3) ५.४४, (४) प्रात.83, (५) प्रयोग भने (१) प्रत्याभ्यान, (तत्य पढमं अज्झयणं सामाइप) मा अध्ययनामा ५७ સામાયિક નામનું અધ્યયન છે. જેના દ્વારા બોધ આદિકના અધિક અધિક પ્રાપ્તિ यती २४ तेनु नाम अध्ययन छे. "समः आयः समायः समायः प्रयोजनमस्पति For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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