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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - अनुयोगचन्द्रिका टीका.मू० ५९ आवश्यकस्य पंडध्ययननिरूपणम् २४६ पूर्वम 'अवस्सयं निविखविस्सामि, सुयं निक्खिविरसामि, खंध निक्खिविस्सामि, अज्झयणं निक्खिविस्सामि' इत्युक्तम् । तत्र-आवश्यकादीनि त्रीणि पदानि निक्षिप्तानि । अध्ययनस्य निक्षेपः सम्प्रति क्रमप्राप्तोऽपि न वियते । यतस्तस्य निक्षेपः वक्ष्यमाणनिक्षेपानुयोगद्वारे ओघनिष्पन्ननिक्षेपे करिष्यते।सू०५९। ___ आधुनावश्यकस्य यद् व्याख्यातं, यच्च व्याख्येयं तदुभयमुपदर्शयन्नाह.. मूलम्-आवस्सयस्स एसो पिंडत्थो वणिओ समासेणं । एत्तो एकेक पुण, अज्झयणं कित्तइस्सामि ॥१॥ तं जहा-सोमाइयं, चउवीसत्थओ वन्दणयं पडिकमणं काउस्सग्गो पच्चक्खाणं । तत्थ पढमं अज्झयण सामाइयं, तस्स ण इमे पूर्व में आवस्पर्ष निक्खि वेस्मामि, सुयं निक्खिविस्सामि, खंध निक्खिविस्सामि अज्झयणं निक्खिविस्सामि" ऐसा सूत्रकारने कहा है : सो इनमें से आवश्क आदि तीन पद तो सूत्रकार द्वारा निक्षिप्त किये जा चुके । अब अध्ययन का निक्षेप क्रम प्राप्त है-सो क्रम प्राप्त होने पर भी उसका निक्षेप सूत्रकार यहां नहीं कर रहे हैं क्यों कि वक्ष्यमाण निक्षेपअनुयोगद्वार में आवनिष्पन्न निक्षेप में वे उपका निक्षेप करेंगे। ।। सूत्र ५९॥ अब सूत्रकार आवश्यक का जो विषय-व्याख्यात हो चुका है तथा आगे जो विषय व्याख्यात हो चुका है यह दिखलाते है:... आवस्सयस्स एसो इत्यादि । ॥ सूत्र ६०॥ शब्दार्थ-(आवस्सयस्स) आवश्यक इसनाम से प्रसिद्ध शास्त्र का (एसा) यह पूर्वोक्तरूप (पिण्डत्थो) पिण्डार्थ (समासेणं) संक्षेपसे (वण्णिओ) कहा है। "आबस्सय निक्निविस्तामि, सुयं निक्खिविरसामि, . नध निवित्र विस्सामि, अज्झयणं निक्खि विस्सामि" આ કથન અનુસાર આવશ્યક, શ્રત અને સ્કન્ધ આ ત્રણને નિક્ષેપ તે થઈ ચુ છે હવે અનુક્રમ પ્રમાણે અધ્યયનને નિક્ષેપ થ જોઈએ. છતાં પણ સૂત્રકાર અહીં ક્રમ પ્રાપ્ત અધ્યયનનો નિક્ષેપ કરતા નથી, કારણ કે આ વિષયને નિક્ષેપ અનુયોગ દ્વારમાં-ઘનિષ્પન્ન નિક્ષેપમાં તેઓ તેને નિક્ષેપ કરશે. સ ૫૯ છે - હવે સૂત્રકાર આવશ્યકને જે વિષય વ્યાખ્યાત થઈ ચુકી છે અને આગળ જે प्रिय व्याभ्यात यवान, मताव छ. "आवस्सयस एसो" त्या For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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