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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिकाटीका ५६ आगमतो भावस्कन्धनिरूपणम् टीका-'से किं तं' इत्यादि-व्यास्या निगदसिद्धा ॥५५॥ अथ-आगमतो भावस्कन्धमाह-- मूलम्--से कि तं आगमओ भाषखंधे ? आगमओ भावखंधे जाणए उवउत्ते । से तं आगमओ भावखंधे ।सू०५६॥ छाया--अथ कोऽसौ आगमतो भावस्कन्धः १ आगमतो भावस्कन्धो ज्ञायक उपयुक्तः। स एष आगमतो भावस्कन्धः ॥५६॥ टीका--'से किं तं' इत्यादि । व्याख्या निगदसिद्धाः ॥५६॥ उत्तर--(भावख धे दुविहे पण्णत्ते) भावस्कंध दो प्रकार का है (तं. जहा), वे प्रकार ये हैं-(आगमओ य नोभागमओ य) एक आमम भावस्कंग और दूसरा नोआगम भावस्कंध । इसकी व्याख्या आमम भावाश्यक की व्याख्या जैसी ही जाननी चाहिये । ॥सू० ५५॥ अब सूत्रकार आगमभावस्कंध का कथन करते हैं"से कि त आगमओ" इत्यादि । ॥ सूत्र ५६ ॥ शब्दार्थ-(से कि त आगमओ भावखधे १) हे भदंत ! आगम को आश्रित करके जायमान आगमभावस्कंध का कया स्वरूप है ? (आगमो भावखंधे जाणए उवउत्ते) उत्तर-आगम नो आश्रित करके स्कंध पदार्थ का उपयुक्त ज्ञाता आगम भावस्कंध है। (सेत आगमओ भावरख धे) यह आगम को .. त्त२-(भावखंधे दुविहे पण्णत्ते) मा१२३ मे २.हा- छ. (तं. जहा। ते प्रा। नीय प्रभारी छे-(आगमओ य नोभागमओ य) (१) माम8-4અને (૨) આગમભાવસ્ક ભાવસ્કન્દની વ્યાખ્યા ભાવ આવશ્યકની વ્યાખ્યા જેવી જ સમજવી છે સૂ૦ ૫૫ છે હવે સૂત્રકાર આગમભાવસ્કન્ધના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરે છે ? “से कि तं आगमओ भावखधे?" त्या: शहा-(से कि तं आगमओ भावनधे १) शिष्य गुरुने सेवा प्रश्न पूछे છે કે ગુરુ મહારાજ ! આગમને આશ્રિત કરીને જાયમાન એવા આગમભાવકત્વનું ३२१३५ छे ? उत्त२ (आगमओ भावख धे जाणए उपउत्ते) मागभने आधारे २४५५४ायना उपयुत (उपयोग परिणाम युत) ज्ञाताने मागम भा५५४५ ४३ छ. (से त आगमओ भाषख) मा २ भागभने माxिa रीने भागमा२४4 For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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