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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ अनुयोगवारसूत्रे बोध्यम् । तदेतत् निगमयन्नाह - ' से तं लोइयं भावावस्सयं इति । तदेतत् लौकिकं भावावश्यकं वर्णितम् || सू० २६|| कुप्राश्चनिकं भावावश्यकमाह मूलम् - से किं तं कुप्पावयणियं भावावस्तयं ? कुप्पावयणियं भावावस्यं जे इमे चरगचीरिंग जाव पासंडत्था इज्जंजलि होमजपों दुरुक्कनमोक्कारमाइयाई भावावस्सयाई करें ति । से तं कुष्पावयणियं भावावस्सयं सू० २७॥ छापा - अथ किं तत् कुमावचनिकं भावावश्यकम् ? कुप्रावचनिकं भावावश्यकं य इमे चरकचीरिक या त् पाषण्ड थाः इज्याज्ञ्जलिहोमजपोन्दुरुक्कन मस्कारादिकान भावावश्यकानि कुर्वन्ति । तदेतत कुप्रावचनिकं भाव | वश्यकम् ॥ ० २७॥ शयक कर्म है वह वाचन और श्रवण लौकिक भावावश्यक है । इस तरह एकदेश में आगमता की अपेक्षा लेकर ( से तं लोइयं भावावस्तयं ) यह पूर्व प्रक्रान्त लौकिक भावावश्यक वा वर्णन किया । || मूत्र २६ ॥ अब सूत्रकार कुप्रावनिक भावावश्यक श वर्णन करते हैं । " से किं तं कुप्पावयणिगं" इत्यादि । || सू० २७|| शःदार्थ – (से) शिष्य पूछा हैं कि हे भदंत ! तं (तत्) पूर्व प्रक्रान्त (पूर्वप्रस्तुत ) ( कुप्पावयणियं भावावस्तयं किं) कुप्रावचनिक भावावश्यक का क्या स्वरूप है ? उत्तर- (कुष्पाणियं भावावस्सयं) कुपाञ्चनिक भागाश्यक का स्वरूप આવશ્યક કર્મ છે, તે વાંચન અને શ્રવણ લૌકિક ( से तंलाई भावावस) या प्रास्तु नो भागम સદૂભાવવાળા) લૌકિક ભાવાવણ્યનું સ્વરૂપ સમજવુ, રૂપ કૅપ્રવચનિક ભાષાत्याहि હવે સૂત્રકાર ને! આગમ ભાવાવણ્યકના બીજા ભેદ वश्यउनु नि३ ४२ छ - " से किं तं कुष्ाव णियं ' शम्हार्थ – (से) शिष्य गुरुने । प्रश्न स्तुत (कुप्पास्यणिय भावावः सयं किं ) प्रावयनिः - ( कुप्पावणियं भावावस्त्रयं ) आवय नि४. (त) पूर्व प्रान्त-पूर्वलावावश्यम्नु २१३५ ठेवु छे? लावारस्यानु स्व३५ मा प्रा उत्तर २ - (जे इमे चरगचीरिंग जाव पासंड था ) ? र, यदि यहि पुत्रे For Private and Personal Use Only ભાષાવશ્યક રૂપ હોય છે. (उद्देश३५ आगमताना
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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