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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोगचन्द्रिका टीका.२०२१ कुप्राः चनिः द्रव्यावश्यकस्वरूपं द्वितीयनिरूपणम् १४३ गृहिधर्म धर्मचिन्तकाविरुद्ध विरुद्ध वृद्ध श्रावकप्रभृतयः पापण्डस्थाः कल्पे प्रादुभातायां रजन्यां यावत् तेजसा जालति इन्द्रस्य वा स्कन्दस्य वा रुद्रस्य बा शिवस्य वा वैश्रवणस्य वा देवस्य वा नागस्य वा यक्षस्य वा भूतस्य वा मुकुन्दस्य श आर्याया वा दुर्गाया वा कोइक्रियाया वा उपलेपनसम्मार्ज नावर्षणधूपपूष्पगन्धमाल्य दिकानि द्रव्यावः कानि कुर्वन्ति । तदेतत् कुप्रावनिक द्रव्यावश्यकम् || सू० २१ ॥ धम्मर्चितगं अनिरुद्धविरुद्ध सावगप्प भितओ पासंडत्था) जो ये चरक, चीरिक, चर्मखंडिक, भिक्षोण्ड, पाण्डुराह, गोनम, गोत्रतिक, गृहि, धर्माधर्म चिंतक, अविरुद्ध, विरुद्ध, और वृद्ध श्रावक आदि हैं कि जो पाषण्डस्थ अपने आप को व्रती मानते हैं (कल्लं पाउप्पभायाए स्यणीए जाव तेयसा जलते) सामान्य प्रभात होने पर प्रभातप्राय रजनी के होने पर यावत् तेज से ज्वलित सूर्य के उदय होने पर (इंदरसवा ) इन्द्र की (खंदस्स वा) अथवा स्कंद - कार्ति क स्वामी की (रुहस्स वा ) अथवा रुद्र की (सिवस्स वा ) अथवा शिव की (वेसमणस्स वा) अथवा वै श्रमण की (देवस्स वा) अथवा सामान्य देव की (नागरस वा ) अथवा नाग की ( जक्रखस्स वा) अथवा यक्ष की (भूयस्स वा ) अथवा भूत की (मुकुंद सवा) अथवा मुकुंद की (अज्जाए वा ) अथवा आर्यादेवी की ( दुग्गाए वा ) अथवा दुर्गा कि ( को किरियाए वा) अथवा कोट्टक्रिया की (उवलेक्ष्ण संमज्जणआवरिसण- घूवपुण्फगंध मल्लाइया वया वरेति - से तं कुप्पावयणियं हिधम्मम्मचितगअवरुद्ध विरुद्ध बुढे सावगप्पमित ऑ पाखंड था) सीरिङ, सर्भभडिङ, लिक्षोड पांडुरंग गौतम, गोप्रति गृद्धिधर्मा, धर्मचिन्तः, અવિરૂદ્ધ અને વૃદ્ધ શ્રાવક આદિ છે કે જે પાષડસ્થ છે-જે પાતાની જાતને વ્રતી માને છે (આ બધાં પદોના અર્થ શબ્દાર્થને અન્તે સ્પષ્ટ કરવામાં આવ્યે છે) (कल्लं पाउपभायाए रमणीए जाव तेयसा जलते) तेथे सांभान्य प्रभात थांલગભગ રાત્રિના અન્તકાળ સમીપ આવે ત્યારે ભળભાંખળું થાય ત્યારે અને સૂ पोताना सहस्रठिरशोथी अथवा मागे त्यारे (इंदरस वा ) -द्रनी अथवा. (खंदस्स ना २४४नी - अति स्वाभिनी, (रुदस्स वा) अथवा रुद्रनी (सिस्स वा) अथवा शिवनी (समणम्स वा ) अथवा वैश्रभथुनी डुमेरनी (देवरस वा) गथवा सामान्य हेवनी ( नागस्स वा) अथवा नागनी ( जक्रखरस वा ) अथवा पक्षी. (भूयस्स वा) अथवा भूतनी (मुकुंदस्स वा) अथवा भुठुन्हनी (अज्जाए वा ) अथवा मार्याहेवीनी ( दुग्गाए वा) अथवा दुर्गानी (को किरियाए वा) अथवा अट्ट (यानी (उवले वण, संमज्जणआव रिसण-धूव पुण्फ गंध मल्लाइवाइ दव्वावस्सयाई करेंति से तं कुष्पाणि For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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