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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४३ www.kobatirth.org अनुयोगसूत्रे अथ ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्त - कुप्रावचनिकद्रव्यावश्यक रूपं द्वितीयभेदं निरूपयति मूलम् - से कि तं कुप्पावयणियं दव्वावस्तयं ? कुप्पावयणियं देव्वावस्यं जे इमे चरगचीरिंगचम्मखंडियभिक्खो डपंडुरंग गोयम गोव्वतिय गिहिधम्मधम्मचिंतगअविरुद्धविरुद्ध वुड सावगप्पभितओ पाडत्था कलं पाउप्पभायाए रयणीए जाव तेयसा जलंते इंदस्स वा खंदस्स वा रुस्स वा सिवस्स वावेसमणस्स वा देवस्स घा नागस्स वा जक्खस्स वा भूयस्स वा मुगुंदस्स वा अज्जाए वा दुग्गाए वा कोकिरियाप वा उवलेवणसंमज्जणआवरिसणधूवपुष्पगंधमलाइयाई दव्वावस्सयाइ करेंति से तं कुप्पावयणियं 3 - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दवावस्यं ॥ सू० २१ ॥ छाया - अथ किं तत् कुप्रावचनिकं द्रव्यावश्यकम् ? कुप्रावचनिकं द्रव्यावश्यकं यः इ चरकचीरिक चर्मखण्डिकरण्डपाण्डुराङ्ग गोतमगोत्रतिक अब सूत्रकारद्वयतिरिक्त का जो दूसरा भेद कुप्रावचनिक द्रव्यावश्यक है उसका वर्णन करते हैं -- "से कि तं कुप्पाव । णिये" इत्यादि । ॥सूत्र २१ ॥ शब्दार्थ - (से) हे भदंत ! (तं) पूर्वप्रक्रान्त (पूर्व प्रस्तुत विषय) कुप्पावयणियं दव्यावरस्यं किं) कुप्रावचनिक द्रव्यावश्यक का क्या स्वरूप है। ( कुष्पावयणियं दव्वावस्सयं) उत्तर - कुप्रावचनिक द्रव्यावश्यक का स्वरूप इस प्रकार है-सुनो(जे चरगचीरिंगचम्मखंडि भिक्खों डपंडरं गगोयम गोव्यतियगिहिधम्म इमे તદ્ભવ્યતિરિકત દ્રવ્યાવશ્યકના જે કુપ્રાથચનિક દ્રશ્યાવશ્યક નામના બીજો ભેદ છે 'तेनु' इथे सूत्रार वायुन उरे छे - " से किं तं कुप्पाश्यणियं" इत्याहि C शब्दार्थ - (से) शिष्य गु३ने येवा प्रश्न पूछे छे ! हे भगवन् ! (तं) पूर्व अन्त (पूर्व प्रस्तुत विषय) (कुप्पावयणियं दव्यावरस्यं किं) आवथनि द्रव्याવશ્યકનું સ્વરૂપ કેવું છે ? उत्तर- (कुष्पावयणियं दव्वरस ) आवयनिक द्रव्यावश्यउनु स्व३५ या अारनुं छे – (जे इमे चरगचीरिगचम्मखंडिय भिक्खोंड पंडुरंगगाय मगोव्वतिगि For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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