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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुयोमचन्द्रिका टीका सू० १४ द्रव्या३श्यकस्वरूपनिरूपणम् छाया-नेगमस्य खलु एकः अनुयुक्त आगमत एक द्रव्यावश्यकम्, हावनुपयुक्ती आगमतो दे द्रव्यावश्यके, त्रयःअनुपयुक्ता आगमतः त्रीणि द्रव्यावश्यकानि । एवं यावन्तः अनुपयुक्ता आगमतः तावन्ति द्रव्यावररकानि । एवमेव व्यवहारस्यापि । संग्रहस्य खलु एका वा अनेके वा अनुपयुक्तो वा अनुपयुक्तां वा द्रव्यावश्यकं शव कानि वा, स एकं व्यावश्यकम् । ऋजुसूत्रस्य एकः अनुपयुक्त अब सूत्रकार नयों के भेद से द्रव्यावश्यक के भेद कहते हैं:-- __ "नेगमस्स णं एगो" इत्यादि। ॥सू० १५॥ शब्दार्थ-(नेगमस्स णं) नैगमनय की विवक्षा से (एगो) एक (अणुवउत्तो) अनुपयुक्त आत्मा (आगमओ) आगम को आश्रित करके (एगं दवावासयं) एक द्रव्यावश्यक है। (दोणि अणुवउत्ता आगमओ दोष्णि दवावस्सायाई) दो अनुपयुक्त आत्माएं आगम की अपेक्षा लेकर दो द्रव्यावश्यक हैं। (तिष्णि अणुवउत्ता आगमओ तिष्णि दव्यावस्सयाई) तीन अनुपयुक्त आत्माएं आगम की अपेक्षा लेकर तीन द्रावश्यक हैं। (एवं जावझ्या अगुवउता आगममो तारइयाई दवावस्सयाई) इसी तरह जितनी और भी आत्माएं अनुपयुक्त हैं उतने · ही आगम की अपेक्षा लेकर सावरक हैं। (८वमेव ववहाररस वि) इसी ताह से व्यवहा नयकी विवक्षा से जानना चाहिये । (संगहस्स णं ए गोवा अणेगो वा अणुवउत्तो वा अगुवउत्ता वा दब्धावस्सयं द वावग्सयाणि वा से एगे दवावस्सए) संग्रहनय को विवक्षा से एक, अनुपयुक्त आत्मा एक द्रव्यावश्यक तथा अनेक द्रव्यावश्यक हैं' ऐसा जो कथन नैगमनय और व्यवहार હવે સૂત્રકાર નાના ભેદની અપેક્ષ એ દ્રવ્યાવશ્યકના ભેદનું કથન કરે છે, “नेगमस्स णं एगा" त्यादि--- ५ - (नेगमस्स णं) गम नयनी दृष्टिणे (.२ ४२वामा यावे तो (एगा) मे (अणुवउनो) मनुफ्युत मारमा (आगम श्रो) सामने माश्रित शन (एगं दवावस्सयं) द्रव्यावश्य४ छ. (दोष्णि अणुवउत्ता आगमभो दोणि दबावरसयाई) मे अनुपयुत मामासी मानी अपेक्षाये मे द्रव्यावश्य छे. (तिणि अणुवउत्ता आगमओ तिण्णि दब्बावस्सयाइ) १ अनुपयु४१ सामान्य सामनी अपेक्षा र द्र०या१२५४ छ, (एवं जावइया अणुवउत्ता आगमओ तावइयाई दवावस्सयाई) मे प्रमाणे मीसा भायो अनुपयुन छे. मेटा मामानी अपेक्षा द्रव्या१५५ छे. (एवमेव ववहारस्स वि) ०यवडा२ नयनी દૃષ્ટિએ વિચારવામાં આવે તો પણ આ વિષયને અનુલક્ષીને ઉપર મુજબનું જ કથન समा. (संगहस्स णं एगो वा अणेगो वा अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा दव्यावस्सय दवाव याण वा से एगे दवावस्सए) सख नयने साधारे विया२ ४२० વામાં આવે તે “એક અનુપયુકત આત્મા અડગમની અપેક્ષાએ એક દ્રવ્યાવશ્યક For Private and Personal Use Only
SR No.020966
Book TitleAnuyogdwar Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages864
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size25 MB
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