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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ७१४॥ नो सक्कइ तो भण्णइ आइमयं अंतराइयचउक्कं । देसग्घाई जं पुण लोगपवत्ताणि दव्वाणि नो देई नो लभए नो भुंजे नोवभुंजए तण्ण । दाणलाभाइयाणं उदओ पुण किंतु तेसि पि ।। ७१५ ॥ गहणस्स धारणस्स य निव्विसयत्तं इहं समवसेअं। अहवा विहु असक्काणु-ट्ठाणाओ वि विण्णेओ ।। ७१६॥ विरियंतराइयं पि हु देसघाई जओ तदुदयम्मि । जीवा निगोयमाई किच्चा जा खीणमोहो त्ति ।। ७१७॥ तित्थगराई ताव उ अप्पा बहुयाइया बहूभेया। तारतमेणं हुंति(य) संजलणा नोकसाया य ।। ७१८॥ लद्धस्स चरित्तस्स उ मूलुत्तरगुणइयारभावाओ । देसघाई भवंती सुत्तम्मि इमं जओ भणियं ।। ७१९॥ सव्वे वि य अइयारा संजलणाणं तु उदयओ टुति। मूलच्छेज्जं पुण होइ बारसण्हं कसायाणं ॥ ७२० ॥ अवसेसा वेयणियाउनाम तह गोत्तसण्णिया पयडी । नाणाईणं मज्झा किंपि गुणं नेव घायंति ॥ ७२१ ।। तत्तो अघाइयाओ भण्णंती नवरि घाइयाइहिं पि। पलिभागाओ हुंती एत्थ य पलिभागसद्दस्स ॥ ७२२ ॥ अयमत्थो किर ताओ अघाइणीओ वि घायणीहि सह । वेइज्जमाणियाओ तेसिं तुल्ला उ दीसंति ॥ ७२३॥ ता एव पुण्णपावा इह ता अग्घायणीसरूवाओ। पयडीओ काइवि साइयाउ बालीससंखाओ ॥ ७२४ ।। पुण्णपगईओ तह एत्थ कावि अस्साइयाउ पयडीओ। पावा भवंति सेसाओ सव्वदेसाण घाईओ ॥ ७२५ ।। ८४ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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