SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। ७०२ ।। ।। ७०३ ॥ ॥ ७०४॥ ।। ७०५ ॥ ॥७०६ ॥ ।। ७०७॥ संजलणवज्जसेसग-कसायबारस उ मोहबारसगं । सव्वविरईयरूवं हणेइ सव्वं पि चारित्तं तत्थुदए वि अ जोग्गा-हाराईणं जियस्स जा विरई। होइ तहिं मेहाई दिटुंता एत्थ विण्णेया मिच्छत्तं जीवाईतत्ताणं सद्दहाणरूवं । तं सव्वं उवहाणइ जं पुण तस्स वि उदयम्मि जीवो नराइदव्वं सद्दहई तत्थ मेहदिटुंतो। पुव्वं व भावणीओ अह भणई देसघाईओ केवलनाणविरहियं नाणाइवरणचउक्कयं भणियं । केवलदसणरहियं भणियं दसणतिगं चेत्थ मइनाणाइचउक्कं केवलआवरणमुक्कनाणस्स । देसे हणईई देस-घाई तह नाणचउगस्स विसए भूए अत्थे जं नो पेक्खइ तत्थ किर उदओ। मइनाणप्पभिईणं अ विसयभूए उ पुण तेसिं अत्थे उ जं न पस्सइ सो केवलनाणवरणओ उदओ। एवं केवलदसण-छ(य) कं नाणस्स देसं तु हणइ तो देसघाई विसए दंसणतिगस्स अत्थे उ । जं नो पस्सइ तत्थ उ दंसणतियगस्स उदओ तेसि अविसयभूए णंतगुणे जं न पस्सए जीवो। तहिं उदओ केवल-दसणस्स नाणीहि किर भणिओ तह अंतरायपणगे आइमचउगस्स जे उ किर दव्वे । गहणधारणजोगे ते विसए हुंति किर ते वि वटुंति णंतभागे समत्थपोग्गलनिकायरूवस्स । नो ताई दव्वाइं दाउं लद्धं तहा भोत्तुं ॥ ७०८ ॥ || ७०९ ॥ ॥ ७१० ॥ ॥७११॥ ॥ ७१२ ॥ ॥ ७१३॥ ८३ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy