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सव्वघाइत्तणो विहु कोइ गुणो पसरई उ जं भणियं । सुट्ठ वि मेहसमुदए होइ पहा चंदसूराणं
।। ६९० ॥ जह वा भूवेणं सव्वदव्वहरणे कएवि किंचिवि य। गिहिसारं उद्धरियं दीसइ तह केवलस्सावि
॥ ६९१ ॥ उद्धरिओ चिट्ठइणंतभागसेसो तओ य मेहेहिं । आवरियचंदमाईण जह पभा कुट्टिमाईहिं
॥ ६९२ ॥ निवईहि हरियगेहे गेहसारं व गोत्तियाईहिं । मइसुयओहीमणपज्जवेहि नाणेहि तह एत्थ
॥६९३ ॥ जीवस्स आवरिज्जइ तहा वि किंची निगोयवत्था जा। होइ तहिं पि चिट्ठइ नाणलवो कोवि जीवस्स ॥ ६९४ ।। एद्दहमेत्ताभावे जिओ वि पावेइ किर अजीवत्तं । गइनाणाईविसए अत्थे किर जण्ण याणाइ
॥ ६९५ ।। सो केवलनाणस्सा-वरणो उदओ न होइ पुण किंतु । मइनाणावरणस्स वि उदओ एवं बुहा बिति ॥ ६९६ ।। केवलदसण आवरण-यंति सामण्णओ य वत्थूणं । जं किर बोहावरणं तं केवलदसणावरणं
॥६९७ ।। तस्स वि अणंतभागो चक्खुअचक्खूवहीहि आवरिओ। मेहाइदिटुंता तहेव एत्थ वि य भणियव्वा
॥ ६९८ ॥ केवलनाणदंसण - खयम्मि मइचक्खुमाइभेयाणं । अवबोहो पावइ जह गामुवलंभम्मि वत्थूणं ।। ६९९ ॥ खेत्ताईण वि लाभो संभवई तह य निद्दपणगस्स । सव्वघाइत्तणे वि हु निद्दावत्थाए जं किंचि
॥ ७०० ॥ वेएई मेहाई दिटुंता हुंति एत्थ ते चेव । निद्दापणकेवलदसणाण इय छक्कयं भणियं
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