SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥६६६ ॥ ॥६६७॥ ॥६६८॥ ॥ ६६९ ॥ ॥६७० ॥ ॥ ६७१ ॥ सम्मट्ठिीबंधं आसज्ज जहणियं तु अयराण । अंतो कोडाकोडी बंधइ तत्तोन्तरमुहुत्ता परियट्टिय पुण सायं पुण अस्सायं इमेण नाएण। पच्छाणुपुव्वीए देसविरयपभिई उ पंचजणा परियट्टिय परियट्टिय सायासाए करंति तिहि मिच्छो। तत्तो बंधइ जा किल सायस्स उ पण्णरस संखा अयराण कोडिकोडी उक्किट्ठठिई तओ य परओ वि । किट्ठो किट्ठयरो विय अस्सायं केवलं बंधं ता जाव तीससागरकोडाकोडी पमत्त परओ य । अपमत्ताई सुद्धा सुद्धयरा सायमेवेगं बंधंति जाव सुहुमे बारमुहुत्ता तओ य एव ठिए । समयूणपण्णरस सागरकोडाकोडिऽसायस्स ठीईए आरब्भिय असायपयडीतिबंधयंतस्स । मंदरसबंधउवचिओ परियत्तयमाणमज्झिमओ परिणामो ता लब्भइ जाव पमत्ते गुणम्मि अयराण । अंतो कोडाकोडी सव्वजहण्णा असायठिई एएसु सम्ममिच्छा उवचियठिइठाणपगइसंकमणे । मंदज्झवसाओ मंदबंधजोगो उ संभवइ तह अपमत्ताईया सुविसुद्धा सायमेव बंधंति । ते तत्थ पभूयरसं करंति जावेस किर मिच्छो केवलमसायकिट्ठो विहेइ सो विय पभूयअणुभावं । अइकिट्ठत्ता पकरइ तह वेयणियस्स दुविहस्स जहण्णठीबंधगेसु एगिदियाइसु वि जहण्णअणुभागे । नो बंधो संभवइ तहविहपरिणामविरहाओ ||६७२ ॥ ।। ६७३॥ ॥ ६७४ ॥ ॥ ६७५ ॥ ॥६७६ ॥ ॥ ६७७ ॥ ८० For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy