SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। ६५४ ॥ ।। ६५५ ॥ ।। ६५६ ॥ ।। ६५७ ॥ ॥ ६५८ ॥ ।। ६५९॥ सुभपयइणसंकिट्ठो मंदणुभागं विहेइ इयमाणा । संकेसे तिरियनरा बंधहि नरगाइजोगति भवपच्चयं न बंधंति नारया नेव सणंकुमाराई । अविरयसम्मो नरगे बद्धाऊ तत्थुपत्तीए सम्मुहो मिच्छं पडिवज्जियुज्जुओ माणुसो उ मंदरसं । पकरइ तित्थगराणं गोतं तब्बंधणस्सेसो अइकिट्ठोई किच्चा एत्थ बहु विसेसणाण साफल्लं । देवाउयं पमत्तो ईगाहाविवरणे जेढे ठीबंधाहिग्गारे विभावियं तेण एत्थ भावणिया। नो भणिया संपइ पुण पण्णरस दु अट्ठ तेवीसं पण्णरसाईयाणं कमेण अह भावणा तहिं एया। पण्णरस विय सुभत्ता सब्बुक्किट्ठसंकिलेसेहिं मंदरसा किजंति तहि तिरियमणुया उ सव्वुकिट्ठाउ। नरगगइसहचरिया एयाओ बंधयंताओ मंदरसा कुव्वंति निरयतइयसुरालयाझ्या देवा । सव्वुक्किट्ठा पंचक्खतिरियजोगा उ बंधंति एया मंदरसाओ करंति ईसाणअंतया किट्ठा । पंचिंदितसविहीणा एया तेरस वि पयडीओ एगिदियपाओगं बंधता ते करंति मंदरसा । पंचिंदितसं तु इमे सुद्धा बंधंति तो तत्थ मंदरसो नो लब्भइ थीनपुंसा दो विसोहीए। असुभत्ता तज्जोगिय सुद्धाउ विहंति मंदरसा सम्मद्दिट्ठी मिच्छो व अट्ठ एयस्स भावणा एवं । तप्पाओगविसद्धो जई पमत्तो असायस्स ।। ६६०॥ ।। ६६१ ॥ ।। ६६२ ॥ ॥६६३ ॥ ॥६६४ ॥ ॥ ६६५ ॥ ७० For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy