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सुभपयइणसंकिट्ठो मंदणुभागं विहेइ इयमाणा । संकेसे तिरियनरा बंधहि नरगाइजोगति भवपच्चयं न बंधंति नारया नेव सणंकुमाराई । अविरयसम्मो नरगे बद्धाऊ तत्थुपत्तीए सम्मुहो मिच्छं पडिवज्जियुज्जुओ माणुसो उ मंदरसं । पकरइ तित्थगराणं गोतं तब्बंधणस्सेसो अइकिट्ठोई किच्चा एत्थ बहु विसेसणाण साफल्लं । देवाउयं पमत्तो ईगाहाविवरणे जेढे ठीबंधाहिग्गारे विभावियं तेण एत्थ भावणिया। नो भणिया संपइ पुण पण्णरस दु अट्ठ तेवीसं पण्णरसाईयाणं कमेण अह भावणा तहिं एया। पण्णरस विय सुभत्ता सब्बुक्किट्ठसंकिलेसेहिं मंदरसा किजंति तहि तिरियमणुया उ सव्वुकिट्ठाउ। नरगगइसहचरिया एयाओ बंधयंताओ मंदरसा कुव्वंति निरयतइयसुरालयाझ्या देवा । सव्वुक्किट्ठा पंचक्खतिरियजोगा उ बंधंति एया मंदरसाओ करंति ईसाणअंतया किट्ठा । पंचिंदितसविहीणा एया तेरस वि पयडीओ एगिदियपाओगं बंधता ते करंति मंदरसा । पंचिंदितसं तु इमे सुद्धा बंधंति तो तत्थ मंदरसो नो लब्भइ थीनपुंसा दो विसोहीए। असुभत्ता तज्जोगिय सुद्धाउ विहंति मंदरसा सम्मद्दिट्ठी मिच्छो व अट्ठ एयस्स भावणा एवं । तप्पाओगविसद्धो जई पमत्तो असायस्स
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