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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वता उकिलेसे निरयगईजोगमेव बंधंति । तो एत्थ तिरिनराणं अग्गहणं तह य तमतमगा कुव्वती मंदरसा तिरिदुगनीगोत्ततिण्णि पयडीओ । जह किर कोई सत्तमपुढवीए नारगो सुद्धो मिच्छत्तचरिमपुग्गलवेयणसमयम्मि अभिमुो सम्मे । पत्थुयपयडीण तिगं विहे मंदाणुभागं ति एयं किर पर्याडितिगं असुभत्ता करेइ मंदअणुभागं । सव्वविसुद्धो तम्हा सम्माभिमुहो तिई भणियं अण्णो एय विसुद्धी वट्टमाणो उ मणुयदुगउच्चं । बंधइ एत्तो गहणं तमतमगयनारगस्सेह Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सो पुण जा मिच्छजुओ नीगोएणं सहेव तिरियगई । जोगं बंधइ भवपच्चयाओ एसोत्थ परमत्थो एर्गिदियथावरगं ईगाहाए उ मज्झपरिणामा । जं भणियं तत्थ इमो भावत्थो पयडिदुगमेयं असुभं अईकिलिट्ठो एयणुभागं विहेइ उक्किङ्कं । अइसुद्धो उ पणिदिय तसं च एयं पयडिजुयलं उक्ati अणुभागं विइ ई मज्झिमस्स इह गहणं । परियत्तमाणया पुण विभावियव्वा इहं एवं जइया इगिदिथावर-जुयलं बंधित्तु पुण वि बंधेइ । पंचिदियजाइतसं पुणो वि एगिंदिथावरगं बंध या उ परियत् - माणया इइ च सो उ तज्जोगे । सुविसुद्ध पयडिदुगं मंदणुभागं विहेइ ति आसोहम्मा य भणणा ईसाणंता उ भवणपभिईओ । तब्बंधसु किट्ठा एगिंदियजोगमायावं ७८ For Private And Personal Use Only ॥ ६४२ ॥ ॥ ६४३ ॥ ॥ ६४४ ॥ ।। ६४५ ।। ॥ ६४६ ॥ ॥ ६४७ ॥ ।। ६४८ ॥ ॥। ६४९ ।। ।। ६५० ।। ॥। ६५१ ॥ ॥ ६५२ ॥ ।। ६५३ ॥
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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