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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पच्चयकहणं चउविहविवागपयडीण पंचपभिईहिं । तिहि गाहाहि भणिस्स अह एत्तो संपवण्णेमि साईयाइपरूवण - विसयद्दारं तर्हि च किर पढमं । घाईणं अजहणो इच्चाईगाहदुगमत्थि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तस्स पयाणं एवं संबंधो होइ पढमगाहाए । पढमपयं दुइयाए आइमयं वयणतियं योज्जं तह पढमाए दुइए पयम्मि दुइयाएँ पढम वयणतिगं । तह पढमाए अंतिम पयजुयले दुइयगाहाए आइमयं वयणतियं तह दुइयाए पुणो वि अंतपयं । भणिउं पयसंबंधो एसिं अह भावणा एवं सेसम्म उ दुविगप्पो दुइज्जगाहाए जं पयं तइयं । तं एत्थं वारतियं भणियं तस्स य इमो अत्थो पढमवाराएँ जहणु-कोसियरतिगं ति दुइयवाराए । जहण्णाजहण्णुक्कोसं तइयाए जहण्णुक्कोसदुगं सुभपयडीणुक्कोसं रसं जहणं तु असुभपयडीणं । निव्वत्तइ तब्बंधगमज्झे जो किर अइविसुद्धो आवरणविग्घकम्मत्तियस्स सुहुमो उ खवगसुहुमंते । मोहस्स नियते सुद्धो पकरइ जहण्णरसं एयाणा अण्णत्थुवसमसेढिएँ घाइकम्माणं । अजहण्णरसो बज्जइ तो सुहुमोवसमगा जइया अजहण्णरसस्स अबंधगाउ होउं पडित्तु पुण जइया । बंधंती अजहण्णं तइयाए सो भवइ साई उवसंताद्वाणं अपत्तपुव्वाण सो भवेऽणाई । अभव्वाण धुवो भवजीवाणं सो भवे अधुवो ७४ For Private And Personal Use Only ॥। ४७४ ॥ ॥। ४७५ ॥ ॥ ४७६ ॥ ॥ ४७७ ॥ ॥ ४७८ ॥ ॥ ४७९ ।। ॥ ४८० ॥ ॥। ४८१ ।। ॥ ४८२ ॥ ॥ ४८३ ॥ ॥ ४८४ ॥ ॥। ४८५ ॥
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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