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सेसे जहण्णउक्कोसइयरबंधे उ खवगनवमंते । मोहस्स सेसकम्म-त्तियस्स खवगो उ सुहुमंते ॥ ४८६ ॥ पुव्वमबद्धो बज्झइ साई अधुवो न अत्थिई अधुवो । धुवणाई न घडंती उक्किट्ठरसं तु घाईणं
॥४८७॥ अइसंकिलिट्ठिमिच्छो सण्णी पज्जो पणिदिओ एगं । समयं अहवा उ दुगं जा बंधइ नेव परओ तो अवयरिय अणुक्किट्ठा बज्झइ साई तओ जहण्णेणं । समयाओ उक्कोसा समयदुगा पुण वि उक्किट्ठ बंधतस्स रसं तो उक्किट्ठो अद्धवो भवे बंधो । अणुकस्सो पुण साई तहेव पुण अंतरमुहुत्ता ॥ ४९० ॥ कालो अणंतओ वा उक्कोसरसं तु बंधमाणस्स । अणुकस्स रसो होई अधुवो एवं अधुवसाई ।। ४९१ ॥ घाईण जहण्णाई विगप्पचउगं भणित्तुं अधाइणं । कम्माण अह चउरो जहण्णाई भावइस्सामि वेयणियनामणुक्कसरसो उ सायाइचउविगप्पो वि । सायजसाणं उक्कस-रसो उ खवगस्स सुहुमंते ॥ ४९३ ॥ तस्सण्णो पुवकमा अणुक्कस्सो तोवसंतमोहस्स। तस्स वि बंधो न भवइ पुण निवडिय तं निबंधयओ ।। ४९४॥ अणुक्कस्स रसो साई उवसंतऽस्स सो भवेऽणाई । धुवअधुवा पुव्वं पिव सेसुक्कसजहण्णअजहण्णा ॥ ४९५ ॥ पुवकमा सुहमंते वेयणिनामाण उक्कसो साई। खीणेऽधुवो जहण्णं रसं तु जससायकम्माणं ॥४९६ ॥ सम्मो मिच्छो व मज्झिम-परिणामो बंधई अह विसुद्धो। संकिट्ठो विय सुभअसुभमेव बंधइ अओ भणियं ॥४९७ ।।
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