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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || २८४ ॥ || २८५ ॥ तत्थ य पज्जेगिंदियपाओगा पंचवीसई जा उ। भणिया तम्मज्झे उरलअंगुवंगम्मि खित्तम्मि ।। २८२ ॥ संघयणसरविहायोगइसुं अण्णयरएसुं खित्तेसु । सा हवइ नवरमेगिदि-जाइठाणम्मि पंचिंदी ॥ २८३ ॥ थावरठाणम्मि तसं भणियव्वं इण्हि तीसई भणिमो। सा य पुव्वुत्ताअट्ठावीसइमज्झम्मि हारदुगे खित्तम्मि होइ नवरं थिरसुभजसकित्तिओ य भणियव्वा । तो पडिवक्खो अबंधगो उ पईएय अपमत्तो तह य नियट्टिगुणी अहव कोइ जीवो उ बद्धतित्थयरो । दिवि उप्पण्णो पुणरवि उववज्जिस्सइ मणुस्सेसुं ॥ २८६ ॥ नरगइजोगं तित्थेण संजुयं तीसई सुरो बंधे । तं च इमं मणुयदुगं पणिदिजाईउरलजुयलं ॥ २८७॥ समचउरवज्जरिसहं परघूसासं पसत्थविहगगई। तसचउगं थिरसुभजसजुयलण्णयरं च किर एगं ॥ २८८॥ सूसरसुभगाएज्जं तित्थं इगवीसमेव पयडीओ। धुवबंधिणीहिं सहिया तीसं एत्तो उ इगतीसं ॥ २८९ ॥ सा सुरगइपाओगा आहारगजुयलजुत्तया जा उ। पुव्वं भणिया तीसं तम्मज्झे तित्थपखेवे ॥ २९०॥ इगतीसा हवई तं अपमत्तजई तहा अपुव्वो वि। किं पी भागं जाव उ सुरगइजोग्गं पबंधेइ ।। २९१ ।। बंधंती एगविहं अपमत्ताई उ तिण्णि जसकित्ती। बंधति सरूवेणं न य कस्सइ चेव पाओगं ॥ २९२ ॥ देवगईजोग्गो वि हु बंधो अट्ठमगुणम्मि वोच्छिण्णो । इय संखेवा नामे अट्ठ वि ठाणाणि भणियाणि ॥ २९३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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