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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिरिगइदुगनियजाई उरलं हुंडं च थावरं अथिरं । अणएज्ज असुभदुभग अपज्ज नवधुवय अजसं च ॥ २७० ।। पत्तेयसुहुमदुगदुगएगयरमपन्जिगिदितेवीसा। एगिदियाइ तिरिनर-बंधहि मिच्छेण जुयजीवा ॥ २७१ ॥ सोसासपराघाए खित्ते पणवीसपज्जिगिदिस्स। होई जोग्गा नवरं थिरसुभजसकित्तिजुयलाणं ॥ २७२ ।। कज्जेत्थ परावत्ती एसा विगलिंदियाण वि जियाणं। पाओग्गा संभवई पणवीसा विविहभंगेहि ॥ २७३ ।। नवरमिह वित्थरभया परठाणेताओ (णत्तेणणेह) वुच्चइय । तव्वित्थरो हु विओसेहि सत्तरीचुण्णिओ नेओ ॥ २७४ ॥ नामकम्मस्स तणुयाण पणवीसेसा वि होइ छव्वीसा । उज्जोयआयवाणं एगयरप्पयडिखेवम्मि ॥ २७५ ॥ सा पन्जिगिदिजोग्गे बज्झइ नण्णजीअपाओग्गा। तत्थोववायजोगा जीवा तब्बंधगा नेया ॥ २७६ ॥ देवगइतयणुपुव्वी पणिदिजाई विउव्वियदुगं च । समचउरं ऊसासं परघायपसत्त्थविहगगई ॥ २७७॥ तसबायरपज्जत्तं पत्तेयं तह थिराण अथिराणं । सुभअसुभजसजसाणं अण्णयरं सुभगसुस्सरयं ॥ २७८ ॥ आएज्जमि गुणवीसं धुवबंधी नवजुयाउ अडवीसं । तिरिमणुयाउ विसुद्धा बंधती देवभवजोगं ॥ २७९ ॥ तित्थयरबंधखेवे एगुणतीसं हवंति तं च पुणो। बद्धति तित्थंयरकम्म सम्मदिट्ठी नरा चेव ॥ २८०॥ देवगईए जोगं बंधंति अण्णहावि गुणतीसा। तिरिपंचिंदियपज्जत्त-जोग्गिया बज्झई उ जहा ॥ २८१ ॥ ४७ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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