SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दुईयकसायविहूणा तेरस देसस्स हुति बंधम्मि । तइयकसायविहूणा पमत्तविरयाण नव बंधे अपमत्तसंजयाण अपुव्वकरणेण तह य समणेण । हासरइभयदुगुच्छा रहिया पंचेव ते हुति तो पुंकोहाईणं कमेण वोच्छेइ सेसठाणाओ । अनियट्टि पंच हाणी जा एगं लोभसंजलणं नव भूयगारबंधा अद्वेव य हुंति अप्पयरबंधा । दो अव्वत्तगबंधा अवट्टिया दस उ मोहम्मि एत्थ य बावीसाई दससु मोहस्स बंधठाणेसु । नव अंतराणि तेसुं भूयक्काराउ जह एत्थ नव भणिया तह अप्पयर- बंधया किमिह नो नव हवंति । जेणिहभणियं अप्पयरबंधया अट्ठ उ हवंति rors बावीसाओ बंधा इगवीसओ न संभवइ । जेणम्मिच्छद्दिट्ठीणं-तरभावेण सासाणो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नो होइ किं तु उवसम - दिट्ठिजिओ कोई सासणो होइ । तस्स य किर इगवीसा भणिया बंधस्स ठाणम्मि तम्हा बावीसाओ सतरसबंधम्मि चेव किर गमणं । होइ अओ अह अट्ठ उ हुति अप्पयरबंधाओ भूयक्कारप्पयरग - वट्ठियवत्तव्वयाण बंधाण | मोहम्म भावणा इह पुव्वुत्तगमेण नेयव्वा तेवीस पण्णवीसा छव्वीसा अट्ठवीसगुणतीसा । तीगतीसमेगं बंधट्टाणाणि नामस्स वण्णचउतेयकम्मगनिम्माणुवघाय अगुरुलहुयं च । नव धुवबंधा एए सव्वत्थ मिलंति बंधम्मि ४७ For Private And Personal Use Only ।। २५८ ।। ।। २५९ ।। ॥ २६० ॥ ॥ २६१ ॥ ॥ २६२ ॥ ।। २६३ ॥ ॥ २६४ ॥ ॥ २६५ ॥ ॥ २६६ ॥ ॥ २६७ ॥ ॥ २६८ ॥ ।। २६९ ।।
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy