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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। २३४॥ ॥ २३५ ॥ ॥ २३६ ॥ ॥ २३७ ॥ ॥ २३८ ॥ || २३९ ।। जुगवं नो बझंती परोप्परं जेण ता विरुद्धाओ। इय तेवत्तरिअधुवा परिमिय समए व बज्झंति इय साईओ जेणं बंधो जाओ पुणो नियत्तेइ । इय अधुवत्तं ताहि अणाइ धुवसंभवो नासिं इण्हि मूलपयडिबंधस्स य चत्तारि हुंति ठाणाणि । एगविहछविहसगविहअडविहबंधाभिहाणाणि तत्थेगविहाईसुं बंधट्ठाणेसु चउसु पत्तेयं । भूयक्कारप्पयरोऽवट्ठियओ तह अवत्तव्वो बंधो चउहा तत्थ य इगाइअप्पयरबंधगो होउं । जो पुणरवि छब्भेयाइयाण बहुबंधगो होइ सो भूयगारबंधो पढमे समयम्मि जत्थऽडविहाइ । बहु बंधिय पुणरवि सत्तविहाई अप्पयरबंधि अप्पयरबंधगो सो पढमे समयम्मि जत्थिगविहाइ । पढमसमयम्मि बंधइ दुइयाईसु वि य तम्मेव बंधइ सोऽवट्ठियओ बंधो जत्थ उ न किंचि बंधेइ । पुण पडियबंधगो सो उ आइसमये अवत्तव्वो एसो उत्तरपयडीण चेव तो मूलपयडिणं तासिं । अब्बंधगो अजोगी नो बंधइ सो पुण तदुत्तं एगादहिगे पढमो एगाईऊणगो उ बीओ उ। तत्तियमेत्तो तइओ पढमे समये अवत्तव्वो एवं च ठिए इगछग-सत्तट्ठविहेसु बंधठाणेसु । चउसु वि तिण्णंतराइं वुड्डीए भूयकाराई। एवं तिष्णिप्पयरा नवरं हाणीए ते किर हवंति । तब्भावणिया सुगमा एगविहाईसु चउसुं तु ॥ २४०॥ ।। २४१ ॥ ।। २४२ ॥ ॥ २४३ ॥ ॥ २४४ ।। ।। २४५ ।। ४४ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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