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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अधुवुरल विउव हारग गइ जाई खगइ आणुपुव्वी य । संघयणागी तसवीसुस्सासं तित्थायवज्जोयं परघाय वेयणीयाउ गोय हासाइदुजुयल तिवेयं । इयपयडीओ भणिया तेवत्तरि अधुवबंधा उ तत्थ धुवाणं बंधो- चउव्विगप्पो जहा उ पणनाणा | विग्घपण दंसचउगं इगदसमगुणी न बंधेइ दसमगुणी नो बंधइ संजलणाणं चउक्कयं तह य । नामधुवबंधिनवगं निदुगं भयदुगंछा य एत्थ किर नाम धुवबंधि नवगमेवं भणंति तव्विउणो । वन्नचउ तेयकम्मागुरुलहु निमिणोवघाया य नो बंध नवमगुणी छगुणी पच्चक्खाणचउगं च । नो बंधइ देसजई अप्पच्चक्खाणचउगं च Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणचउगं मिच्छत्तं थीणतिगं नो य बंधए सम्मो । उवसंतसुहुममाई जश्या किर पडिया ते पुण वि बंधंति भणियपयडी तया इह होइ साइबंधो त्ति । बंधोणाई वसंत - माइठाणं अपत्ताणं भव्वाणं बंधते अद्भुवबंधो धुवो अभव्वाणं । परियत्तमाणियाओ अद्भुविया इह भणिज्जंति तासि अधुवत्तमेवं भाविज्जइ जह पराघा उस्सासं । पज्जत्तेणेव समं बज्झइ नन्नत्थ उ अधुव्वा एगिदियपाओगियबंधसमं आयवं तु बंधेइ । नोज्जोयं तिरियगई पबंधए नेयमन्नत्थ तित्थयराहारदुगं नो बंधइ सम्मसंजमेहि विणा । सायासायाथीपुमपभिई सेसाउ पयडीओ ४३ For Private And Personal Use Only ॥ २२२ ॥ ॥ २२३ ॥ ॥ २२४ ॥ ।। २२५ ।। ॥ २२६ ॥ ॥ २२७ ॥ ॥ २२८ ॥ ॥ २२९ ॥ ॥ २३० ॥ ॥ २३१ ॥ ।। २३२ ।। ॥ २३३ ॥
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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