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गइयाइसु गाहाए मग्गणठाणेसु बंधसामित्तं । अइदेसानेयमहो नाणस्सेमाइ गाहाणं
||२१०॥ जुयलस्स उ भावत्थो कम्मत्थयवित्तिओ फुडं नेओ। अह साइयाइगाहा भावत्थं संपवक्खामि वेयणीय(याउ)रहियछक्कम्मगस्स साई अणाइधुवअधुवो। चउविहबंधो तेसिं पंचण्डं मोहरहियाणं
॥ २१२ ।। उवसंतो नो बंधं करेइ सुहुमो उ मोहणीयस्स। दसिगारसगुणिगाऊ छक्कम्मअबंधगाहोउं
॥ २१३ ॥ तो आऊक्खयठीईखएण वा परिवडित्तु जो पुणवि। ताणि कम्माई बंधइ साईबंधो हवइ तस्स
॥ २१४ ।। दसिगारसगुणठाणं अपत्तपुव्वाण णाइबंधो त्ति । अभब्वजियाण धुवो अधुवो भव्वाण बंधते ।। २१५ ।। साईबंधो तइए न घडइ सो जेण बंधवुच्छेए । घडई तबंधविगमो अजोगिणो हवइ नण्णत्थ ॥ २१६ ॥ तस्स पडिवायअब्भावओ य नो घडइ साइबंधो त्ति । सेसा घडंति तब्भावणा य तिण्हं पि सुगमेव ॥ २१७ ॥ आउम्मि साइबंधो तस्स हि वेइज्जमाणआउस्स । निय एव तिभागाई काले बंधो उ नोऽणाई ॥ २१८ ।। अंतमुहुत्ता उवरिं बंधाभावाउ अधुवबंधो त्ति । न धुवो अओ य भणियं अणाइधुवसेसओ आऊ ॥ २१९ ॥ एतोत्तरासु सायाइवत्रणं तत्थ ताव धुवअधुवा । जहसंखं सगचत्ता तिवत्तरी विय इमा ताओ ॥ २२० । धुवबंधी भय कुच्छा कसाय मिच्छंतराय आवरणा । वण्णचउ तेयकम्मा गुरुलहु निमिणोवघाया य ॥ २२१ ॥
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