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न भणिज्जइ अडविहबंधगो त्ति अहवा चसद्दओ सोऽवि । इह भणिओ दट्ठव्वो एवं पच्छाणुपुव्वीए
॥ १८६ ॥ बंधाइयसंजोगं अपमत्तंतं भणित्तु अह ताण । मिच्छासासाइयाण छगुणाणं भणइ संजोगं
॥ १८७॥ अवसेसा मिच्छाई पमत्तयंता उ तेसु वि अडबंधा। सगबंधगा वि अड वेययंति य उदीरणे भज्जा ॥ १८८ ।। वेइज्जमाणआउस्सा-वलियाए पविसकालम्मि। सत्तविहा आउविणा सेसगकालम्मि अट्टविहा || १८९ ॥ आउयबंधविरहिओ मिस्सो बंधेई सत्त वेयइ य । उद्दीरइ अट्ठविहं न कयाइ उदीरई सत्त
॥ १९२॥ तिण्हं पि य संजोगो दारं ति भणित्तु संपयं भणइ । बंधविहाणदारं विहाणसद्दो उ भेयत्थो
॥ १९३॥ नेओ तहि दाराइं चत्तारि महत्थयाइ एयाई । पयइट्ठीअणुभागप्पएसबंधाभिहाणाई
॥ १९२ ॥ हुति तहिं पयइपभिइचउण्हमवबोहणत्थमेत्थ बुहा। मोयगदिद्रुतं वण्णयंति जह मोयगो कोइ
॥ १९३ ।। वायावहारवत्थूनिप्पण्णो हणइ पयइए वायं । एवं पित्तसिलेसमवहारिदव्वेहि निप्पण्णो
॥ १९५ ॥ पित्तसिलेसं अवहणइ सोवि ट्ठिइए उ कोवि दिणमेगं । चिट्ठइ अण्णो दिणदुग-माई ता जावमासाइ ॥१९५ ॥ कालं पविचिट्ठइ तो परेण सविणासमेइ तह सोवि। अणुभावेण सिणिद्धत्तण-महुरत्तणगुणेणं च ॥ १९६ ॥ कोइ इगगुणणुभावो अण्णो दुतिमाइसंखगुणभावो । तह कोवि कणिक्काइय व्वप्पमाणपएसेहिं
॥ १९७ ॥
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