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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। प्र.१ ॥ ॥ प्र.२ ।। ॥ १७६ ॥ || १७७ ॥ ॥ १७८॥ ॥ १७९॥ लहुचुण्णिअभिप्पाएणं सुक्कज्झाण आइय दुभेयं । न विरुद्धं पुव्वधराण होइ सुत्ते जओ भणियं सव्वप्पमायरहिया मुणओ खीणोवसंतमोहा य । झायारो नाणधणा धम्मज्झाणस्स निद्दिट्ठा एए च्चिय पुव्वाणं पुव्वधरा सुप्पसत्थसंघयणा । दुण्ह सजोगाऽजोगा सुक्काण पराण केवलिणो इयगाहाण दुगस्स उ भावत्थोयं जहा उ अपमत्ता । खवगोवसामगा विय धम्मज्झाणस्स झायारो सव्वप्पमायइयगाहाए य इमो उ होइ भावत्थो। अह एएच्चिय गाहाइ होइ एसो उ भावत्थो जे धम्मज्झायगा उ एएच्चिय ते वि चेव पुव्वाणं । आइमगाणं सुक्किलझाणयभेयाण दुण्हं पि हुंतीह झायगा किं तु पुव्वचउदसधरा उ अपमत्ता । एवं विसेसणं अप्पमत्त-साहूणं नेयव्वं नो निग्गंथाणं जे मासतुसमाइयाण साहूणं । अप्पुव्वधराण वि होइ सुक्कझाणस्स उवउत्ती दुण्हं उ सुक्कझाणगअंतिमभेयाण जोगजोगिजिणा । झायारो एएच्चिय दुईयगाहाइ एसत्थो उवसंतो उ पुहुत्तं झायइ झाणं वियक्कवीयारं। खीणकसाओ झायइ एगत्तवियक्कमवियारं सुहुमकिरियं सजोगी झायइ झाणं तु चरमकालम्मि । केवलिअजोगिनिच्चं झायइ झाणं समुच्छिण्णं आउयबंधारंभं पमत्तठाणे करित्तु अपमत्ते । ठाणम्मि समत्थेई जइं विहु कयावि किर तह वि ॥ १८० ॥ ॥ १८१ ॥ ॥ १८२ ।। ॥ १८३ ॥ ॥ १८४॥ ॥१८५ ॥ 30 For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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