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॥ १४० ॥
एगो उ जोगपच्चयबंधो होई अबंधगु अजोगी। मिच्छाईहेऊणं पुण एए उत्तरपभेया मिच्छत्ताविरइकसायजोगभेयाण हुँति जहसंखं । पणबारसपणवीसं पनरसभेया गुणेसाह
॥ १४१॥ पणपण्ण १ पण्ण २ तिय छहियचत्त ३।४ । इगुचत ५ छक्कचउसहिया। दुजुया य वीस ६ ७ ८ सोलस ९ दस १० नव ११ नव १२ सत्त १३ हेऊओ जप्पच्चइओ बंधो इयदारं अवसियंति होइ जहा । इय दारं वण्णेमी एयस्सत्थो इमो होइ
॥ १४३॥ सो बंधो पत्तेयं कम्माण विसेसबंधहेऊहिं। नाणपओसाईहिं जह होइ तहा भणइ इण्हिं
॥ १४४॥ पडणीय अंतराइय इच्चाइ इगारसाहि गाहाहि । तासिं अत्थो सुगमो अह य भणइ जेसु ठाणेसु ॥१४५ ॥ बंधं उदयमुदीरणविहिं च एयस्स एस भावत्थो । जेसु ठाणेसु गुणसण्णिएसुं बंधाइया हुंति
|| १४६ ॥ तिण्णि वि दाराओ तत्थ बंधठाणा उ मूलपयडीणं । बंधट्ठाण इमाए गाहाए आह तहि पढमं
॥ १४७॥ बंधुदयुदीरणाणं भावत्थोऽयं भणिज्जइ तत्थ । मिच्छाइबंधहेऊहिं वासपुण्णसमुग्गोव्व
॥ १४८॥ सव्वत्तो वि हु पुग्गल-निचिए लोयम्मि कम्मजोगेहिं । इह कम्मवग्गणा पुग्गलेहि जीवस्स सव्वत्तो ॥ १४९ ॥ अग्गीअयपिंडो इव अण्णोण्णाणुगमसरिससंबंधो। बंधो भण्णइ तेसिं जहट्ठिईए अवट्ठाणं
॥ १५० ॥ पुग्गलाणं अपवत्तण-करणविसेसा सभावओ वावि । उदयप्पत्ताण विवाग-वेयणं होइ इह उदओ
॥ १५१ ॥
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