SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। ५३६ ॥ अडवण्णसयं तेवीसं सहस्सा दो य लक्ख जीवा उ। दोण्ह गिरीणायामो, संखित्तो तं धणुकुरूणं लक्खाइ तिण्णि दीहा, विज्झुप्पभगंधमायणा दोऽवि। छप्पण्णं च सहस्सा, दोण्णि सया सत्तवीसा य ॥५३७॥ अउणट्ठा दोण्णि सया, उणसयरि सहस्स पंच लक्खा य । सोमणसमालवंता, दीहा रुंदा दस सयाई ॥ ५३८॥ नव चेव सयसहस्सा, पणवीसं खलु भवे सहस्सा य । चारिसया छलसीया, धणुपट्ठाई कुरूणं तु ॥ ५३९ ॥ पुव्वेण मंदराण, जो आयामो उ भद्दसालवणे । सो अडसीइ विभत्तो, विक्खंभो दाहिणुत्तरओ ॥ ५४०॥ बार सया छव्वीसा, किंचूणा जम्मुईण वित्थारो । अट्ठासीइगुणो पुण, एसो पुव्वावरो होइ ॥ ५४१॥ उत्तरकुराइ धायइ, होइ महाधायई य रुक्खा य । तेसि अहिवइ सुदंसणं-पियदसणनामया देवा ॥ ५४२ ॥ जो भणिओ जंबूए, विही उ सो चेव होइ एएसि । देवकुराए संवलि-रुक्खा जह जंबूदीवम्मि ॥५४३॥ अडवण्णसयं पणुवीस, सहस्सा दो य लक्ख मेरुवणं । मंदरवक्खारनईहिं, अट्ठहा होति पविभत्तं धायइसंडे मेरु, चुलसीइ सहस्स ऊसिया दोऽवि। ओगाढा य सहस्सं, तं चिय सिहरम्मि विच्छिण्णा ॥५४५ ॥ मूले पणनउय सया, चउणउय सया य होइ धरणियले । विक्खंभो चत्तारि य, वणाइ जह जंबूदीवम्मि ॥५४६ ।। जत्थिच्छसि विक्खंभ, मंदरसिहराहि उच्चइत्ताणं । तं दसहिं भइय लद्धं, सहस्ससहियं तु विक्खंभं । वा ॥ ५४४ ॥ ॥ ५४७॥ 393 For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy