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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ५४९ ।। पंचेव जोयणसए, उष्टुं गंतूण पंचसयपिहुलं । नंदणवणं सुमेरुं, परिक्खित्ता ठियं रम्म ॥ ५४८॥ नव चेव सहस्साई, अद्भुट्ठाइं च जोयणसयाई । बाहिरओ विक्खंभो, उ नंदणे होइ मेरूणं अद्वैव सहस्साई, अद्भुट्ठाइं च जोयणसयाई । अभिंतर विक्खंभो, उ नंदणे होइ मेरूणं ।। ५५० ।। तत्तो य सहस्साई, उड़े गंतूण अद्धछप्पण्णं । सोमणसं नाम वणं, पंचसए होइ विच्छिण्णं ॥ ५५१ ॥ तिण्णेव सहस्साई, अद्वेव सयाइं जोयणाणं तु । सोमणसवणे बाहि, विक्खंभो होइ मेरूणं ॥ ५५२ ।। दो चेव सहस्साइं, अद्वेव सयाई जोयणाणं तु । अंतो सोमनसवणे, विक्खंभो होइ मेरूणं ।। ५५३॥ अट्ठावीस सहस्सा, सोमणसवणा उ उप्पइत्ताणं । चत्तारि सए रुंदं, चउणउए पंडगवणं तु ॥ ५५४॥ ईसिं अंतो अंता, विजया वक्खारपव्वया सलिला । धायइसंडे दीवे, दोसु वि अद्धेसु नायव्वा ॥ ५५५ ॥ सीयासीओयवणा, एक्कारस सहस्स छ सय अडसीया। वक्खाटु सहस्सा, पण्णरस सया उ सलिलाओ मेरू चउणउइसए, मेरुस्सुभओ वणस्सि संमाणं। अडपण्णा सत्तसया, पण्णरस सहस्स दो लक्खा ॥५५७ ॥ छायाला तिण्णि सया, छायाल सहस्स दोण्णि लक्खा य । वणनगनइमेरुवणाण, वित्थारो मेलिओ एसो ।। ५५८ ॥ दीवस्स य विक्खंभा, एवं सोहेउ जं भवे सेसं । सोलसविहत्तलद्धं, विजयाणं होइ विक्खंभो ।। ५५९ ॥ 3१४ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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