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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। ४६४ ॥ ।। ४६५ ।। ॥ ४६६ ॥ ॥४६७॥ ॥४६८॥ ॥४६९।। पण्णरसिक्कासीया, आयंसमुहाण परिरओ होइ। अट्ठार सत्तणउया, आसमुहाणं परिक्खेवो बावीसं तेराई, परिक्खेवो होइ आसकण्णाणं । पणवीस अउणतीसा, उक्कमुहाणं परिक्खेवो दो चेव सहस्साई, अद्वेव सया हवंति पणयाला। घणदंतगदीवाणं, परिक्खेवो होइ बोधव्वो अड्डाइज्जा य दुवे, अद्धट्ठा अद्धपंचमा चेव । दो चेव अद्ध छ सत्तद्ध, सत्तमा होइ एक्को य एगृणिया य नवई, जोयणमद्धेण होइ ऊणाओ। जंबूद्दीवंतेणं, दीवाणं होइ उस्सेहो वीसा नउइ पण्णट्ठि, चत्त पण्णरस पंचसीया य । सट्ठी चत्ता चेव य, गोयम दीवस्स भागाणं जावइय दक्खिणाओ, उत्तरपासे विवत्तिया चेव । चुल्लसिहरम्मि लवणे, विदिसासु अओ परं नत्थि अंतर दीवेसु नरा, धणुसय अट्ठस्सिया सया मुइया । पालंति मिहुणधम्मं, पल्लस्स असंखभागाउ चउसट्ठीपिट्ठकरं-डयाण मणुयाण तेसिमाहारो । भत्तस्स चउत्थस्स य, उणसीइ दिणाणि पालणया पंचाणउई लवणे, गंतूणं जोयणाणि उभओऽवि । जोयणमेगं लवणो, ओगाहेणं मुणेयव्वो पंचाणउइं सहस्से, गंतूणं जोयणाणि उभओऽवि। जोयणसहस्समेगं, लवणे ओगाहओ होइ पंचाणउई लवणे, गंतूणं, जोयणाणि उभओऽवि। उस्सेहेणं लवणे, सोलस किल जोयणे होइ ॥ ४७० ॥ ॥४७१ ।। ॥ ४७२ ॥ ॥ ४७३ ॥ ॥ ४७४ ॥ ॥४७५ ॥ 30७ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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