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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥४५२॥ ।। ४५३ ॥ || ४५४ ॥ ।। ४५५ ॥ ।। ४५६॥ ॥ ४५७॥ जोयणबिसट्ठि अद्धं च, ऊसिया वित्थरेण तस्सद्धं । एएसि मज्झयारे, पासाया चंदसूराणं चुल्लहिमवंत पुव्वा-वरेण विदिसासु सागरं तिसए । गंतूणंतरदीवा, तिण्णि सए होति विच्छिण्णा अउणापण्ण नवसए, किंचूणे परिहि तेसिमे नामा। एगोरुय आभासिय, वेसाणा चेव लंगूलो एएसि दीवाणं, परओ चत्तारि जोयण सयाई । ओगाहिऊण लवणं, सपडिदिसिं चउसयपमाणा चत्तारंतरदीवा, हयगयगोकण्णसक्कुलीकण्णा । एवं पंचसयाई, छस्सत्त य अट्ठ नव चेव ओगाहिउण लवणं, विक्खंभोगाहसरिसया भणिया । चउरो चउरो दीवा, इमेहि नामेहि नायव्वा आयंसमिंढगमुहा, अओमुहा गोमुहा य चउरो य । आसमुहा हत्थिमुहा, सीहमुहा चेव वग्घमुहा तत्तो य आसकण्णा, हरिकण्णा कण्णकण्णपाउरणा । उक्कमुहा मेहमुहा, विज्जुमुहा विज्जुदंता य घणदंत लट्ठदंत, निगूढदंता य सुद्धदंता य । वासहरे सिहरम्मि वि, एवं चिय अट्ठवीसा वि तिण्णेव होंति आई, एकुत्तरवड्ढिया नव सयाओ। ओगाहिऊण लवणं, तावइयं, चेव विच्छिण्णा पढमचउक्कपरिरया, बीयचउक्कस्स परिरओ अहिओ। सोलसहिएहि तिहिं, जोयणसएहिं (एमेव) सेसाणं एगोरुयपरिक्खेवो, नव चेव सयाइ अउणपण्णाई। बारस पण्णट्ठाई, हयकण्णाणं परिक्खेवो ॥ ४५८॥ ॥ ४५९ ॥ ॥४६०॥ ॥ ४६१ ।। ॥४६२ ।। ॥ ४६३ ॥ 305 For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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