________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ ४४०॥
॥४४१ ॥
॥४४२ ॥
॥४४३॥
॥ ४४४॥
॥ ४४५ ॥
पणनउइसहस्सेहि, सत्तसया दगवुड्डि जइ होइ । बायालसहस्सेहिं, दगवुड्डी नगाण का होइ दगवुड्डि तिसय नवहिय, पणयाला पंचनउइभागा य । दस पणनउइभागा, चउसय बायाल ओगाहो उभयं विसोहइत्ता, लवणगिरीणुस्सयाहितो सेसं । उणसयरि नवसया वि य, दुवीस पणनउइभागा य जंबूद्दीवंतेणं, एवइयं ऊसिया जलंताओ। उदहितेण नव सए, तिसट्ठसत्तत्तरीभागा अउणत्तरे नवसए, चत्तालीस पणनउइभागा य । ओगाहियं गिरीणं, वित्थारो सत्तसय सट्ठी पणनउइभाग असिई, सवण्णए बिसत्तरी सहस्साइं। दो य सया आसीया, लद्धं तेरासिएण इमं किंचूणा अडवण्णा, पणनउइभागा जोयणा पंच । पुरिमनगस्स य सुद्धे, एयम्मि उ पच्छिमो होइ गोयमदीवस्सुवरिं, भोमिजं कीलवासनामं तु । बासट्ठि जोयणाई, समूसियं जोयणद्धं तु तस्सद्धं विच्छिण्णं,तस्सुवरि सुट्ठियस्स सयणिज्ज। दीव व्व लवणब्भि-तराण एमेव रविदीवा एमेव चंददीवा, नवरं पुव्वेण वेइयंताओ। दीविच्चय चंदाणं, अभितरलावणाणं च बाहिर लावणगाण वि, धायइसंडा उ बारससहस्से ।
ओगाहिय रविदीवा, पुव्वेणेमेव चंदाणं धायइसंडभिंतर, रविदीवा बारसहस्स लवणजलं । ओगाहिउ रविदीवा, पुव्वेणेमेव चंदाणं
॥ ४४६ ॥
॥ ४४७॥
॥ ४४८ ॥
॥ ४४९ ॥
॥ ४५०॥
॥ ४५१ ॥
304
For Private And Personal Use Only