________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बायालीस सहस्सा, दुगुणा गिरिवाससंजुया जाया। बावीसहिया पणसीइ, सहस्सा तस्स परिहीओ ॥ ४२८॥ तेवट्ठा अट्ठसया, अट्टट्ठि सहस्स दोण्णि लक्खा य। जंबूद्दीवपरिरए, संमिलिए होइमो रासी
॥ ४२९ ॥ इगनउया पणसीई, सहस्स पणलक्ख इत्थ गिरिवासो।। सोहे अट्ठविहत्ते, लवणगिरिणंतरं होइ
।। ४३० ॥ तिण्णट्ठभाग बिसयरि, सहस्स चोद्दस हियं सयं चेगे। कक्कोडाइनगाणं-तरं तु अट्ठण्ह मूलम्मि
॥ ४३१ ॥ पंचाणउइ सहस्से, गोतित्थं उभयओऽवि लवणस्स। जोयणसयाणि सत्त उ, दगपरिवुड्डी वि उभओऽवि ॥४३२॥ बारससहस्सपिहुलो, अवरेणुदहिम्मि तत्तियं गंतु । सुट्ठियउदहीवइणो, गोयमदीवो त्ति आवासो ॥ ४३३ ॥ सत्तत्तीस सहस्सा, अडयाला नवसया य से परिही । लवणंतेण जलाओ, समूसिओ जोयणस्सद्धं ।। ४३४ ॥ जंबूद्दीवंतेणं, अडसीइ जोयणाणि उव्विद्धो। पणनउई भागाण य, दुगुणिय वीसं च दुक्कोसं ।। ४३५ ॥ रविससिगोयमदीवा-णंतरदीवाण चेव सव्वेसि । वेलंधराणुवेलं-धराण सव्वेसिं करणमिमं
।। ४३६॥ ओगाहिऊण लवणं, जो वित्थारो उ जस्स दीवस्स । तहियं जो उस्सेहो, उदगस्स उ दोहि तं विभए ।। ४३७॥ जं हवइ भागलद्धं, सव्वेसि अद्धजोयणं च भवे । अभिंतरम्मि पासे, समुसिया ते जलंताओ ।। ४३८ ॥ वित्थारं सत्तगुणं, नवसय पण्णास भइयमुस्सेहं । सदुगाउयमाइल्लं, लवणदीवाण जाणहि
॥ ४३९ ॥
30४
For Private And Personal Use Only