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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ४१६ ॥ ॥ ४१७॥ ॥ ४१८ ॥ ॥४१९ ॥ ॥ ४२० ॥ ॥ ४२१ ॥ देसूणमद्धजोयण, लवणसिहोवरि दगं दुवे काला । अइरेगं अइरेगं, परिखड्डइ हायए वावि अग्भिंतरियं वेलं, धरति लवणोदहिस्स नागाणं । बायालीस सहस्सा, दुसत्तरि सहस्स बाहिरियं सढि नागसहस्सा, धरंति अग्गोदयं समुद्दस्स। वेलंधरआवासा, लवणे चाउद्दिसिं चउरो पुव्वाइं अणुकमसो, गोत्थुभ दगभास संख दगसीमा। गोत्थुभ सिवए संखे, मणोसिले नागरायाणो अणुवेलंधरवासा, लवणे विदिसासु संठिया चउरो। कक्कोडग विज्जुप्पभ, कइलास रुणप्पभे चेव कक्कोडग कद्दमए, कैलास रुणप्पभे य रायाणो । बायालीस सहस्से, गंतुं उदहिम्मि सव्वेऽवि चत्तारि जोयणसए, तीसं कोसं च उवगया भूमि । सत्तरस जोयणसए, इगवीसे ऊसिया सव्वे जत्थिच्छसि विक्खंभं, वेलंधरमाणुसोत्तरनगाणं । पंचसएहि गुणए, अट्ठाणउएहिं तं रासिं तस्सेव उस्सएण उ, भयाहि जं तत्थ भागलद्धं तु । चउसय चउवीसजुयं, विक्खं तं वियाणाहि कमसो विक्खंभा सिं, दस बावीसाइं जोयणसयाई। सत्त सए तेवीसे, चत्तारि सए य चउवीसे मूले बत्तीस सए, बत्तीसे जोयणाणि किंचूणा। मज्झे बावीस सए, छलसीए साहिए परिही तेरस सया उ उवरिं, इगयाला किंचि ऊणिया परिही । कणगं करययफालिय, दिसासु विदिसासु रयणमया ॥ ४२२ ॥ ॥४२३॥ ॥ ४२४ ॥ ॥ ४२५ ॥ ॥ ४२६ ॥ ॥ ४२७॥ 303 For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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