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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ४७६ ॥ ॥ ४७७ ॥ ॥ ४७८ ॥ ॥ ४७९ ॥ ॥४८०॥ ॥ ४८१ ॥ पंचाणउई सहस्से, गंतूणं जोयणाणि उभओऽवि । उस्सेहेणं लवणो, सोलससाहस्सिओ भणिओ वित्थाराओ सोहिय, दस य सहस्साइ सेस अद्धम्मि । ते चेव पक्खिवित्ता, लवणसमुदस्स सा कोडी लक्खं पंचसहस्सा, कोडीए तीइ संगुणेऊणं । लवणस्स मज्झपरिहिं, ताहे पयरं इमं होइ नवनउई कोडिसया, एगट्ठी कोडि लक्ख सत्तरस । पण्णरस सहस्साणि य, पयरं लवणस्स निद्दिटुं जोयणसहस्स सोलस, लवणसिहाऽहोगया सहस्सेगं । पयरं सत्तरस सहस्स संगुणं लवणघणगणियं सोलस कोडाकोडी, तेणउइ कोडिसयसहस्साई। ऊयालीस सहस्सा, नवकोडिसया य पण्णरसा पण्णास सयसहस्सा, जोयणाणं भवे अणूणाई। लवणसमुदस्सेहिं, जोयणसंखाइ घणगणियं जत्थिच्छसि विक्खंभं, ओगाहित्ताण नउयसयगुणियं । ते सोलसहि विभत्तं, उवरिमसहियं भवे गणियं जत्थिच्छसि उस्सेहं, ओगाहित्ताण लवणसलिलस्स । पंचाणउइविभत्ते, सोलसगुणिए गणियमाहु जत्थिच्छसि उव्वेहं, ओगाहित्ताण लवणसलिलस्स। पंचाणउइविभत्ते, जं लद्धं सो उ उव्वेहो चत्तारि चेव चंदा, चत्तारि य सूरिया लवणतोए। बार नक्खत्तसयं, गहाण तिण्णेव बावण्णा दो चेव य सहस्सा, सत्तट्ठी खलु भवे सहस्सा य । नय य सया लवणजले, तारागणकोडिकोडीणं || ४८२ ॥ ॥ ४८३ || ॥४८४॥ ।। ४८५ ।। ॥ ४८६॥ ॥ ४८७॥ 3०८ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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