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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उवरिमहिडिल्लाणं, वित्थाराणं विसेसमद्धं जं । उस्सेहरासिभइयं, वुड्डी हाणी य एगत्तो ॥ ३०९ ॥ सा चेव दोहिं गुणिया, उभओ पासम्मि होइ परिवुड्डी। . हाणी य गिरिस्स भवे, परिहायं तेसु पासेसु ॥३१० ॥ जो जत्थ उ वित्थारो, गिरिस्स तं सोहियाहि मूलिल्ला । वित्थारा जं सेसं, सो छेयगुणो उ उस्सेहो ॥ ३११ ॥ मेरुस्स तिण्णि कंडा, पुढवोवलवइरसक्करा पढमे । रयए य जायरूवे, अंके फलिहे य बीयम्मि ॥ ३१२ ॥ एगागारं तइयं, तं पुण जंबूणयामयं होइ। जोयणसहस्स पढमं, बाहल्लेणं च बीयं तु ।। ३९३ ॥ तेवट्ठि सहस्साइं, तइयं छत्तीस जोयणसहस्सा । मेरुस्स उवरि चूला, उव्विद्धा जोयणदुवीसं ॥ ३१५ ॥ एवं सव्वग्गेणं, समूसिओ मेरु लक्खमइरित्तं । गोपुच्छसंठियम्मि, ठियाइ चत्तारि य वणाई ।। ३१४ ॥ भूमीइ भद्दसालं, मेहलजुयलम्मि दोण्णि रम्माई। नंदणसोमणसाइं, पंडगपरिमंडियं सिहरं ॥३१६ ॥ बावीस सहस्साई, पुव्वावरमेरु भद्दसालवणं । अड्डाइज्जसया पुण, दाहिणपासम्मि उत्तरओ ॥ ३१७॥ पुव्वेण मंदराओ जो आयामो उ भद्दसालवणे । अट्ठासीइ विभत्तो, सो वित्थारो हु दाहिणओ ॥ ३१८ ॥ दाहिणपासे गिरिणो, जो वित्थारो उ भद्दसालवणे । अट्ठासीइगुणो सो, आयामो होइ पुग्विल्ले ॥ ३१९ ॥ चउपण्ण सहस्साइं, मेरुवणं अट्ठभागपविभत्ते । सीयासीओयाहिं, मंदरवक्खारसेलेहि ।। ३२०॥ ૨૯૪ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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