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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिच्छदिट्ठि महारंभ परिगहो तिव्वकोह निस्सीलो। नरयाउयं निबंधई, पावमई, रुद्दपरिणामो ॥ २५२ ॥ असण्णिसरिसिव पक्खी, सीह उरगित्थि जंति जा छढेि। कमसो उक्कोसेणं, सत्तम पुढवी मणुय मच्छा ॥ २५३ ॥ वाला दाढी पक्खी, जलयर नरयागया उ अइकूरा । जंति पुणो नरएसु, बाहुल्लेणं न उण नियमो ॥ २५४॥ दो पढम पुढवि गमणं, छेवढे कीलियाइ संघयणे । इक्किक्क पुढविवुड्डी, आइ तिलेसा उ नरएसु ॥ २५५ ॥ दुसु काऊ तइयाए, काउ नीला य नील पंकाए। धूमाए नीलकिण्हा, दुसु किण्हा हुँति लेस्साउ ॥ २५६ ॥ सुर नारयाण ताओ, दव्वलेस्सा अवट्ठिया भणिया। भाव परावत्तीए, पुण एसिं हुंति छल्लेस्सा ॥ २५७ ।। निर उवट्टा गब्भय, पजत्तसंखाउ लद्धि एएसि। चक्कि हरिजुअल अरिहा, जिण जइ दिसि सम्मपुहविकमा।। २५८ ॥ रयणाए ओहि गाउय, चत्तारि अछुट्ट गुरु लहु कमेण । पइ-पुढवि गाउयद्धं हायइ जा सत्तमि इगद्धं ॥ २५९॥ गब्भनर ति पलियाऊ, ति गाऊ उक्कोसतो जहण्णेणं । मुच्छिम दु हावि अंतमुहु अंगुल असंख भागतणू || २६० ॥ बारस मुहुत्ते गब्भे इयरे, चउवीस विरह उक्कोसो। जम्म-मरणेसु समओ, जहण्णसंखा सुरसमाणा ॥२६१ ॥ सत्तमि महि नेरइए, तेऊ वाऊ असंख नर तिरिए । मुत्तूण सेसजीवा उप्पज्जंति नरभवम्मि ॥ २६२॥ सुर नेरइएहि चिय, हवंति हरि अरिह चक्किबलदेवा । चउविह सुर चक्किबला, वेमाणिय हुति हरि अरिहा ॥ २६३ ॥ ૨૬૦ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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