________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
तेसीया पंचसया, इक्कारस चेव जोयण सहस्सा । रयणाए पत्थडंतर, मेगोचिय जोयण तिभागो सत्ताणवइ सयाई, बीयाए पत्थडंतरं होइ । पणसत्तरि तिण्णिसया, बारससहस्सा य तइयाए छावट्ठसयं सोलस, सहस्स दोति पंकारो भागा य । अड्डाइज्जसयाई, पणवीस सहस्स धूमाए बावण्णसड्डू सहसा, तमप्पभापत्थडंतरं होइ । एगोचिअ पत्थडओ, अंतररहिओ तमतमाए पट्ट धणु छ अंगुल, रयणाए देहमाणमुक्कोसं । सेसासु दुगुणं, दुगुणं पणधणुसय जावचरिमाए रयणाय पढमपयरे, हत्थतियं देहमाणमणुपयरं । छप्पणंगुलसड्ढा बुड्ढी जा तेरसे पुण्णं
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जं देहपमाण उवरिमाए पुढवीइ अंतिमे पयरे । तं चिय हिट्टिम पुढवीए, पढमपयरम्मि बोधव्वं तं चेगूणग सगपयर, भइयं बीयाइ पयर वुड्डभवे । तिकरत्ति अंगुल करसत्त, अंगुला सड्ढि गुणवीसं पण अंगुलवीसं, पणरसधणु दुण्णिहत्थ सड्ढा य । बासट्टिघणुहसड्डा, पण पुढवी पयर वुड्डिइमा इय साहाविय देहो, उत्तर वेउव्विओ य तद्दुगुणो । दुविहो वि जहण्ण कमा, अंगुल असंखं संखंसो सत्तसु चवीस मुहू, सग, पणरदिणेग दु चउ छम्मासा । उववाय चवणविरहो, ओहे बारस मुहुत्त गुरू लहुओ दुहावि समओ, संखा पुण सुरसमा मुणेयव्वा । संखाउ पज्जत्त पणिदि तिरि नरा जंति निरएसु
૨૫
For Private And Personal Use Only
॥ २४० ॥
॥ २४१ ॥
।। २४२ ॥
॥ २४३ ॥
॥ २४४ ॥
॥ २४५ ॥
॥ २४६ ॥
॥ २४७ ॥
॥ २४८ ॥
॥ २४९ ॥
।। २५० ।।
।। २५१ ।।