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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २२८॥ खाए तमए य तहा, झसे य अंधे य तह य तमिसे य इय पंचम पुढवीए, पंच निरइंदया हुति हिमवद्दल लल्लके, तिण्णि उ निरय इंदया य छट्ठी ए। एगो य सत्तमाए, अपइट्ठाणो उ नामेणं ॥ २२९ ॥ पुव्वेण होइकालो, अवरेण पइट्ठिओ महाकालो। रोरो दाहिणपासे, उत्तरपासे महारोरो ॥ २३०॥ तेहिंतो दिसि विदिसिं, विणिग्गया अट्ठ निरय आवलिया। पढमे पयरे दिसि इगुणवण्णा विदिसासु अडयाला ॥ २३१ ॥ बीयाइसु पयरेसु, इग इग हीणा उ हुंति पंतीओ। जा सत्तमि महि पयरे, दिसि इक्किक्को विदिसि नत्थि ॥ २३२ ॥ इट्ठपयरेगदिसि, संखअडगुणा चउ विण स इगसंखा। जह सीमंतय पयरे, एगुणनउया सया तिण्णी अपइट्ठाणे पंचउ, पढमो मुहमंतिमो हवइ भूमी। मुह भूमि समासद्धं, पयरगुणं होइ सव्वधणं छण्णवइ सय तिवण्णा, सत्तसु पुढवीसु आवली निरया। सेस तियासी लक्खा तिसय सियाला नवइ सहसा ॥ २३५ ॥ तिसहस्सुच्चा सव्वे, संखमसंखिज्ज वित्थडायामा। पणयाल लक्ख सीमंतओ य लक्खं अपइट्ठाणो ॥२३६ ॥ हिट्ठा घणो सहस्सा, उप्पिं संकोयओ सहस्सं तु । मज्झे सहस्स झुसिरा तिण्णि सहस्सुस्सिया निरया छसु हिट्ठोवरि जोयण, सहस्स बावण्ण सड्वचरिमाए। पुढवीए निरय रहियं, निरया सेसम्मि सव्वासु ॥ २३८ ॥ बिसहस्सूणा पुढवी, तिसहस गुणिएहि नियय पयरेहिं । ऊणा रुवुण निय पयर, भाईया पत्थडंतरयं ॥ २३९ ।। || २३४ ॥ ।। २३७।। ૨૫૮ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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