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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पढम महीवलएसु, खिविज्ज एवं कमेण बीयाए। दुति चउ पंच च्छ गुणं, तइयाइसु तंपि खिव कमसो ॥ २१६ ॥ मज्झेचिय पुढवि अहे, घणुदहि पमुहाण पिंड परिमाणं । भणियं तओ कमेणं, हायइ जा वलय परिमाणं ॥ २१७ ।। तीस पणवीस पणरस, दस तिण्णि पणूण एगलक्खाई। पंच य निरया कमसो, चुलसीइ लक्खाइ सत्तसु वि ॥ २१८ ।। तेरिकारस नव सग, पण तिण्णिग पयर सव्वि गुणवण्णा । सीमंताई अप्पइट्ठाणंता इंदया मज्झे ॥ २१९ ।। सीमंतओ त्थ पढमो, बीओ पुण रोरुय त्ति नामेण । भंतो उण त्थ तत्तो कंतो, तइओ, चउत्थओ होइ उब्भंतो ॥ २२० ।। संभंतमसंभंतो विब्भंतो चेव सत्तमो निरओ। अट्ठमओ तत्तो पुण, नवमो, सीओत्ति णायव्वो ॥ २२१ ॥ वक्कंतमवक्कतो, विक्कंतो चेव रोरुओ निरओ। पढमाए पुढवीए, इंदया एए बोधव्वा ॥ २२२ ॥ थणिए थणए य तहा, मणए वणए य होइ नायव्वे । घट्टे तह संघट्टे, जिब्भे अवजिब्भए चेव ॥ २२३॥ लोले लोलावत्ते, तहेव घणलोलुए य बोधव्वे। बीयाए पुढवीए, इक्कारस इंदया एए ॥ २२४ ॥ तत्तो तविओ तवणो, तावणो पंचमो य निद्दिड्डो। छटो पुण पज्जलिओ, उज्जलिओ य सत्तमओ ॥ २२५ ॥ संजलिओअट्ठमओ, संपज्जलिओ य नवमओ भणिओ। तइयाए पुढवीए, एए नव होति निरइंदा ॥ २२६ ॥ आरे तारे मारे, वच्चे तमए य होइ नायव्वे । खाड खडे खडखडे, इंदय नरया य चउत्थीए ॥ २२७ ॥ ૨૫૦ For Private And Personal Use Only
SR No.020964
Book TitleShastra Sandeshmala Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages430
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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