________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
॥ २०४ ॥
इय जिट्ठ जहण्णा पुण, दसवास सहस्स लक्ख पयर दुगे । सेसेसु उवरि जिट्ठा, अहो कणिट्ठा उपइ पुढ वि उवरि खिइ ठिइ विसेसो, सगपयर विहत्त इच्छसंगुणिओ । उवरिम खिइ ठिइ सहिओ, इच्छिय पयरम्मि उक्कोसा ॥ २०५ ॥ सत्तसु खित्तज वेयण, अण्णुण्णकयावि पहरणेहि विणा । पहरण कया वि पंचसु, तिसु परमाहम्मिय-कया वि बंधण गइ संठाणा, भेया वण्णा य गंध रस फासा । अगुरु लहु सद्द दसहा असुहा वि य पुग्गला निरए नरया दसविह वेयण सीओसिण खुह पिवास कंडूहिं । परवस्सं जरदाहं, भय सोगं चेव वेयंति
॥ २०६ ॥
॥ २०७ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पण कोडि अट्ठ सट्ठी, लक्खा नव नवइ सहस पंचसया । चुलसी अहिया रोगा, छट्ठी तह सत्तमी नरए
रयण प्पह सक्कर पह, वालुय पह पंक पह य धूमपहा । तमपहा तमतमपहा, कमेण पुढवीण गोत्ताई
૨૫૬
For Private And Personal Use Only
॥ २०८ ॥
॥ २०९ ॥
घम्मा वंसा सेला, अंजण रिट्ठा मघा य माघवई । नामेहिं पुढवीओ, छत्ताइ च्छत्त संठाणा असीय बत्तिस अडवीस, वीस अट्ठार सोल अड सहसा । लक्खुवरि पुढवि पिंडो, घणुदहि घणवाय तणुवाया गयणं च पट्टाणं, वीस सहस्साई घणुदही पिंडो । घणतणुवायागासा, असंख जोयणजुया पिंडो न फुसंति अलोगं चउ, दिसिंपि पुढवी य वलयसंगहिया । रयणाए वलयाणं, छद्ध पंचम जोयणं सङ्कं विक्खंभो घणउदही, घणतणुवायाण होइ जहसंखं । सतिभाग गाऊयं, गाऊयं तह गाउय तिभागो
॥ २१० ॥
॥ २११ ॥
॥ २१२ ॥
॥ २१३ ॥
॥ २१४ ॥
॥ २१५ ॥